पिछले दो हफ़्तों से चीनी की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। कीमतों में भारी गिरावट से चीनी मिलें हताश हो गयी है। दरअसल सरकार की सक्ति के चलते फैक्ट्रियों को जो भाव मिले उस भाव में चीनी बेचैनी पद रही है। केंद्र ने फैक्ट्रियों को चेतावनी दी है कि वे हाल ही में दिए गए कोटे का 90 फीसदी हिस्सा बेच दें नहीं हीं तो अगले महीने के लिए उनका कोटा काम कर दिया जायेगा।

3400 से 3450 रुपये प्रति क्विंटल पहुंची चीनी

पिछले दो हफ़्तों से चीनी की कीमत गिरने से चीनी मिलें परेशान हैं। पिछले 14 दिन में चीनी की कीमत में 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। इस समय चीनी 3400 से 3450 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है। एक तरफ केंद्र का चीनी बेचने का दबाव और दूसरी तरफ चीनी की अपेक्षित कीमत नहीं मिलना मिलों की परेशानी बढ़ा रहा है।

संक्रांति के बाद से चीनी की मांग और कीमत हुई कम

संक्रांति के दौरान चीनी की काफी मांग रही। लेकिन संक्रांति के बाद चीनी की मांग और कीमत धीरे-धीरे कम हो गई। दूसरी ओर, केंद्र ने यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यधिक कोटा देना शुरू कर दिया है कि देश के आंतरिक बाजार में किसी भी परिस्थिति में चीनी की कमी न हो। हालांकि इस साल उत्पादन पिछले साल की तुलना में पांच से दस लाख टन कम है, लेकिन चीनी का कोटा प्रचुर मात्रा में होने के कारण ऐसी कोई स्थिति नहीं है कि बाजार में चीनी उपलब्ध न हो। आने वाले समय में चीनी की कमी की कोई तस्वीर नहीं है

इथेनॉल के लिए चीनी के रूपांतरण को किया गया प्रतिबंधित

उत्तर प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र में चीनी मिलों का सीजन एक महीने तक जारी रहने की संभावना है, इसलिए व्यापारियों का अनुमान है कि अगली अवधि में आय पिछले साल के बराबर ही रहेगी। इसमें केंद्र ने इथेनॉल के लिए चीनी के रूपांतरण को भी प्रतिबंधित कर दिया है। इन सबका परिणाम यह हुआ है कि चीनी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने लगी है। चीनी मिलों के प्रतिनिधियों ने कहा कि व्यापारियों को उम्मीद है कि कम से कम अगले दो महीनों में उन्हें यहां से आवश्यक मात्रा में चीनी मिल जाएगी, इसलिए चीनी की खरीद के लिए उतनी प्रतिस्पर्धा नहीं हो रही है जितनी होनी चाहिए थी। इन सबका प्रतिकूल प्रभाव चीनी के दाम न बढ़ने पर पड़ रहा है।

राज्य में फैक्ट्रियों पर पड़ा है भारी असर

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से बड़ी मात्रा में चीनी उत्तर-पूर्वी राज्यों में जाती है। हालाँकि, वर्तमान में ये राज्य उत्तर प्रदेश की चीनी को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। महाराष्ट्र की चीनी मिलों को उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की तुलना में पूर्वोत्तर में चीनी भेजना अधिक महंगा लगता है।
ऐसी तस्वीर है कि उत्तर पूर्वी राज्य भी इस चीनी को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि उत्तरी चीनी महाराष्ट्र से सस्ती है। चीनी मिल सूत्रों ने बताया कि इसके चलते महाराष्ट्र में चीनी की बिक्री कम हुई है।

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