हैदराबाद, 26 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): तेलंगाना में पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक माने जाने वाले नीम के पेड़ों पर मंडरा रहे गंभीर संकट से निपटने के लिए वन वैज्ञानिकों ने निर्णायक कदम उठाया है। मुलुगु स्थित फॉरेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (FCRI) ने नीम में फैल रही जानलेवा डाईबैक बीमारी पर व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन और उपचार अभियान शुरू किया है।
पिछले कुछ वर्षों में राज्यभर में हजारों नीम के पेड़ सूख चुके हैं। इस बीमारी के कारण पेड़ों की ऊपरी शाखाएं मरने लगती हैं, पत्तियां झड़ जाती हैं और फूल आना बंद हो जाता है। FCRI की जांच में इसका प्रमुख कारण ‘फोमोप्सिस एज़ाडिरैक्टे’ नामक फंगस पाया गया है, जो भारी मानसूनी बारिश, अत्यधिक नमी और तापमान में तेज उतार-चढ़ाव के कारण तेजी से फैलता है। वर्ष 2021 से संक्रमित टहनियों पर किए गए लैब परीक्षणों में इसकी पुष्टि हुई है।
FCRI के डीन वी. कृष्णा, जो पहले GHMC की ग्रीन सिटी पहल का नेतृत्व कर चुके हैं, ने कहा कि नीम केवल एक पेड़ नहीं बल्कि पारिस्थितिकी और परंपरा का आधार है। उन्होंने बताया कि विशेषज्ञ डॉ. जगदीश के नेतृत्व में एक दीर्घकालिक अध्ययन चल रहा है, जिसमें मैपिंग तकनीक से मरते हुए पेड़ों की निगरानी की जा रही है। साथ ही यह भी जांचा जा रहा है कि प्रदूषण, कठोर मिट्टी और शहरी दबाव किस तरह बीमारी को और गंभीर बना रहे हैं।
अध्ययन के दौरान एक प्रभावी उपचार पद्धति सामने आई है। डॉ. जगदीश द्वारा सुझाए गए तीन चरणों के स्प्रे ट्रीटमेंट—पहले कार्बेंडाज़िम, एक सप्ताह बाद थियोफेनेट-मिथाइल और 20 दिन बाद प्रोफेनोफोस—ने 2023 में FCRI परिसर में किए गए परीक्षणों में उल्लेखनीय परिणाम दिए। इस उपचार से प्रभावित नीम के पेड़ों में दोबारा नई पत्तियों और शाखाओं की वृद्धि देखी गई, जबकि बिना इलाज वाले पेड़ लगातार कमजोर होते गए।
फिलहाल इस पहल का फोकस हैदराबाद और विस्तारित GHMC क्षेत्रों पर है, जहां शहरीकरण का दबाव अधिक है। इसके साथ ही दूरदराज के इलाकों से तुलनात्मक डेटा भी जुटाया जा रहा है। FCRI राज्यव्यापी परीक्षण, नागरिकों के लिए छंटाई और मल्चिंग दिशानिर्देश तथा राष्ट्रीय स्तर के संरक्षण प्रोटोकॉल तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है।
डीन कृष्णा ने स्पष्ट किया कि समय पर हस्तक्षेप से नीम के पेड़ों को बचाया जा सकता है। उन्होंने नगर निकायों, वन विभाग, गैर-सरकारी संगठनों और आम नागरिकों से बीमार पेड़ों की रिपोर्टिंग, लॉजिस्टिक सपोर्ट और फंडिंग में सहयोग की अपील की।
यह संकट, उत्तर भारत में पहले देखे गए नीम प्रकोपों की तरह, जलवायु परिवर्तन के दौर में शहरी पेड़ों की बढ़ती संवेदनशीलता को उजागर करता है। FCRI ने अब मजबूत नीम किस्मों को बढ़ावा देने और हरियाली विस्तार के लिए वन, कृषि विभाग, NGOs और नागरिक समाज के साथ साझेदारी का आह्वान किया है। डीन कृष्णा के शब्दों में, “हम चिंता को कार्रवाई में बदल रहे हैं—यह प्रयास भारत में नीम संरक्षण के लिए एक मॉडल बनेगा।”
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