मुंबई : मुंबई के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में कृषि से जुड़ा एक कार्यक्रम “कृषि विजन 2047 – कल्टिवेटिंग अ सस्टेनेबल एग्रीकल्चर ” का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि भूमि (Krishi Bhoomi) संस्था द्वारा किया गया, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, कृषि में नए प्रयोग , कृषि नीतियाँ और कार्बन फार्मिंग जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूकता फैलाना था।
इस अवसर पर देश के विभिन्न कोनों से प्रतिष्ठित विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, नीति विश्लेषक, किसान प्रतिनिधि और उद्यमी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में विशेष रूप से पद्मश्री वैज्ञानिक जी. डी. यादव, कमोडिटी एक्सपर्ट श्री अजय केडिया, आर्थिक विशेषज्ञ श्री पंकज जायसवाल, गजाली ग्रुप की सीईओ केजल शाह, फार्मलैब के श्री संतोष चव्हाण, कृषि बाजार विशेषज्ञ श्री नरेंद्र पवार, डेयरी विशेषज्ञ श्री बालाजी गिट्टे, ग्रैंड हार्वेस्ट के प्रबंध निदेशक श्री राहुल शाह, कृषि भूमि के संस्थापक श्री सुबोध मिश्रा और सह-संस्थापक श्रीमती कविता मिश्रा सहित कई विशिष्ट अतिथि शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत भाषण और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इसके पश्चात चर्चा का मुख्य विषय रहा — जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव। विशेषज्ञों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते किसानों को तापमान में बढ़ोतरी, अनियमित वर्षा, सूखा और कीटों के बढ़ते प्रभाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे फसल उत्पादन में कमी आ रही है और किसानों की आजीविका पर गहरा असर पड़ रहा है।
पद्मश्री वैज्ञानिक जी. डी. यादव ने अपने संबोधन में कहा, “किसानों को शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। जब तक उन्हें आधुनिक तकनीकों और कृषि पद्धतियों की सही जानकारी नहीं दी जाएगी, तब तक खेती में सुधार संभव नहीं है। हमें गाँव-गाँव जाकर किसानों को प्रशिक्षित करना होगा।”
महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे ने कृषि भूमि के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि, कृषि भूमि के कृषि विजन २०४७ के इस कार्यक्रम से मैं बहुत खुश हूँ। सुबोध जी का यह प्रयास काफी सराहनीय है। जलवायु परिवर्तन कृषि में बहुत बड़ी समस्या है। खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण के लिए यह बहुत घातक है। हमें कृषि में AI , ड्रोन , आधुनिक तकनीक को अपनाना चाहिए।
आर्थिक विशेषज्ञ श्री पंकज जायसवाल ने इस विषय पर ज़ोर देते हुए कहा, “जब तक IIT और IIM जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में कृषि को एक गंभीर विषय के रूप में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक कृषि क्षेत्र में सार्थक सुधार नहीं आएगा। यदि बच्चों को प्रारंभिक स्तर पर ही खेती से जोड़ दिया जाए और उन्हें इसके व्यावसायिक पहलुओं की शिक्षा दी जाए, तो वे इसे एक सशक्त करियर विकल्प के रूप में देखेंगे।”
कमोडिटी एक्सपर्ट श्री अजय केडिया ने एग्री कमोडिटी के महत्त्व पर जोर देते हुए कहा कि आनेवाले समय में एग्री कमोडिटी किसानों को मुख्य धारा में लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा । इसके आलावा एग्रीकल्चर में युवाओं की रूचि बढ़ाने के लिए मीडिया का योगदान और सरकार का सहयोग महत्वपूर्ण है ।
कृषि बाजार विशेषज्ञ श्री नरेंद्र पवार ने ज़मीन से जुड़ाव की बात करते हुए कहा, “जब तक हम बच्चों को मिट्टी से दूर रखेंगे, तब तक वे खेती की अहमियत को नहीं समझ पाएंगे। उन्हें खेतों में ले जाना, मिट्टी के साथ जोड़ना, और कृषक जीवन का अनुभव कराना बेहद ज़रूरी है।”
इस कार्यक्रम में कार्बन फार्मिंग पर भी विशेष सत्र आयोजित किया गया। वक्ताओं ने बताया कि यह एक नई पद्धति है जिसमें किसानों को अपनी भूमि में कार्बन को संरक्षित रखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे न केवल पर्यावरण को लाभ होता है, बल्कि किसानों को भी आर्थिक सहायता मिल सकती है। जैविक खाद, पेड़ लगाना और न्यूनतम जुताई जैसी तकनीकों को बढ़ावा देकर यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
कविता मिश्रा ने कहा, “कृषि भूमि का उद्देश्य केवल कृषि चर्चा करना नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर किसानों के जीवन में बदलाव लाना है। हमें गर्व है कि इस मंच पर इतने विशेषज्ञों ने मिलकर कृषि के भविष्य पर चर्चा की।”
सुबोध मिश्रा, कृषि भूमि के संस्थापक ने अंत में कहा, “हमारा लक्ष्य है कि 2047 तक भारत की कृषि न केवल आत्मनिर्भर हो, बल्कि जलवायु के अनुकूल, टिकाऊ और युवाओं के लिए आकर्षक भी बने। इसके लिए नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और किसानों को एक साथ मिलकर काम करना होगा।”
कार्यक्रम में उपस्थित सभी किसानों और अतिथियों ने कृषि भूमि के इस प्रयास की खुले दिल से सराहना की और भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहने की माँग की। इस अवसर पर कृषि से जुड़ी कई नवीन पहलुओं और तकनीकों का भी प्रदर्शन किया गया, जिससे किसानों को जागरूकता के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी मिला।