मुंबई, 2 दिसंबर, 2025 ( कृषि भूमि डेस्क): चावल केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए मुख्य आहार है। लेकिन पिछले कुछ समय से वैश्विक चावल बाजार में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिल रही है। दुनिया के शीर्ष निर्यातकों में से एक वियतनाम (Vietnam) गंभीर संकट का सामना कर रहा है, जिससे उसके चावल निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इस संकट ने अनजाने में ही भारत के लिए वैश्विक चावल बाजार पर अपनी पकड़ और मजबूत करने का एक अभूतपूर्व मौका पैदा कर दिया है।
वियतनाम के निर्यात संकट की जड़: मेकोंग डेल्टा की कहानी
वियतनाम के चावल निर्यात में गिरावट का मुख्य कारण उसके सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र मेकोंग डेल्टा (Mekong Delta) में आई चुनौतियाँ हैं। मेकोंग डेल्टा, जो वियतनाम के कुल चावल उत्पादन का लगभग 50% से अधिक हिस्सा देता है, सूखे (Drought) और समुद्री जल के प्रवेश (Saltwater Intrusion) से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। खारे पानी के कारण खेतों में लवणता (Salinity) बढ़ी है, जिससे किसान धान की तीन फसलें लेने के बजाय अब केवल दो या एक ही फसल ले पा रहे हैं। बाजार विश्लेषकों के अनुसार, वियतनाम का चावल निर्यात इस वर्ष पिछले साल की तुलना में 6% से 8% तक गिर सकता है। यह एक बड़ा गैप है, क्योंकि वियतनाम सालाना लगभग 60 से 70 लाख टन चावल का निर्यात करता है।
वियतनाम की आपूर्ति में यह कमी वैश्विक चावल व्यापार में एक बड़ा खालीपन पैदा कर रही है।
वैश्विक बाजार में भारत की बादशाहत और तुलनात्मक स्थिति
यह संकट ऐसे समय में आया है जब भारत वैश्विक चावल बाजार में पहले से ही ‘बादशाहत’ की स्थिति में है।
भारत का बाजार हिस्सा (Market Share): वर्तमान में, भारत दुनिया के कुल चावल निर्यात में 40% से अधिक की हिस्सेदारी रखता है, जो उसे सबसे बड़ा निर्यातक बनाता है।
उत्पादन में मज़बूती: भारत का घरेलू चावल उत्पादन मजबूत है और सरकार के पास पर्याप्त स्टॉक मौजूद है। हमारे पास बासमती, गैर-बासमती सफेद चावल और टूटे चावल की आपूर्ति की विशाल क्षमता है।
अवसर की तुलना: वियतनाम की हिस्सेदारी लगभग 15% से 20% है। उसका निर्यात घटने से, एशिया और अफ्रीका के वे बड़े आयातक देश, जो वियतनाम पर निर्भर थे, अब अपनी आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए सीधे भारत की ओर देख रहे हैं। यह भारत को अपने निर्यात मूल्य (Export Value) और मात्रा (Volume) दोनों को बढ़ाने का मौका देता है।
भारत के लिए आर्थिक और किसान हितैषी अवसर
इस स्थिति का सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था और किसानों को मिल सकता है:
निर्यात राजस्व में वृद्धि: निर्यात की मांग बढ़ने से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) मजबूत होगा, जिससे रुपये को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलेगी।
बेहतर मूल्य निर्धारण शक्ति (Pricing Power): जब बाजार में आपूर्ति कम होती है, तो निर्यातक देशों को अपनी कमोडिटी के लिए बेहतर कीमत मिलती है। भारत अपने चावल का मूल्य निर्धारण (Pricing) बेहतर ढंग से कर सकता है।
किसानों को लाभ: निर्यात मांग में वृद्धि से घरेलू बाजार में भी चावल की खरीद कीमतें बढ़ती हैं। इससे भारतीय किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिल सकेगा और उनकी आय में सीधी वृद्धि होगी।
चुनौतियाँ: संतुलन और घरेलू खाद्य सुरक्षा
हालांकि अवसर शानदार है, भारत को कुछ चुनौतियों पर ध्यान देना होगा ताकि यह अवसर दीर्घकालिक सफलता में बदल सके। भारत की पहली प्राथमिकता 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित रखने के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। पिछले अनुभवों को देखते हुए, सरकार को निर्यात पर अचानक प्रतिबंध (Ban) लगाने की स्थिति से बचना होगा। अचानक बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए हमारे बंदरगाहों (Ports) और परिवहन नेटवर्क को कुशल और तैयार रहना होगा। \
वैश्विक बाजार में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए, निर्यात किए जा रहे चावल की गुणवत्ता (Quality Control) पर लगातार ध्यान देना महत्वपूर्ण है। वियतनाम का संकट भारत के लिए वैश्विक चावल व्यापार में एक रणनीतिक बढ़त (Strategic Edge) लेने का मौका है। यदि भारत गुणवत्ता, आपूर्ति और मूल्य के बीच सही संतुलन बनाता है, तो यह वैश्विक चावल बाजार का ‘अविवादित अगुआ’ बन सकता है।
===
हमारे लेटेस्ट अपडेट्स और खास जानकारियों के लिए अभी जुड़ें — बस इस लिंक पर क्लिक करें:
https://whatsapp.com/channel/0029Vb0T9JQ29759LPXk1C45