संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता संरक्षण में उठाया ऐतिहासिक कदम, आदिवासी समुदायों को मिला वैश्विक नीति-निर्माण में औपचारिक स्थान

मुंबई, 04 नवंबर (कृषि भूमि डेस्क): संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आदिवासी और स्थानीय समुदायों को वैश्विक नीति-निर्माण में औपचारिक रूप से शामिल किया है। यह पहल पर्यावरणीय शासन में समावेशिता और पारंपरिक ज्ञान को मान्यता देने की दिशा में एक मील का पत्थर मानी जा रही है।

27 से 30 अक्टूबर 2025 के बीच पनामा सिटी में आयोजित सम्मेलन में जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity – CBD) से संबंधित सब्सिडियरी बॉडी की पहली बैठक संपन्न हुई। यह पहली बार है जब किसी बहुपक्षीय पर्यावरण संधि के तहत आदिवासी समुदायों को सहायक निकाय में औपचारिक भागीदारी का अधिकार दिया गया है।

बैठक का उद्घाटन कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री और CBD सम्मेलन की अध्यक्ष इरीन वेल्ज़ टोरेस ने किया। उन्होंने कहा कि यह निकाय “पर्यावरणीय लोकतंत्र की दिशा में अभूतपूर्व कदम” है, जो कुन्मिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework) के कार्यान्वयन में आदिवासी समुदायों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करेगा।

पनामा के पर्यावरण मंत्री जुआन कार्लोस नवारो ने कहा, “संरक्षण अधिकारों के बिना संभव नहीं और न्याय के बिना स्थिरता संभव नहीं।” उन्होंने बताया कि नया निकाय आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के बीच सेतु का काम करेगा और स्थानीय समुदायों को संसाधन प्रबंधन के निर्णयों में समान भागीदार बनाएगा।

CBD की कार्यकारी सचिव एस्ट्रिड शूमाकर ने इस बैठक को “ऐतिहासिक क्षण” बताते हुए कहा कि इस पहल की सफलता का मापदंड केवल सिफारिशें नहीं होंगी, बल्कि यह होगा कि “धरातल पर समुदाय कितने सशक्त होते हैं और पारिस्थितिक तंत्र कितना बहाल होता है।”

बैठक में टोगो के जोनास कोमी अंते को रिपोर्टर चुना गया, जबकि नॉर्वे की सामी परिषद की गुन-ब्रिट रेटर को सह-अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने सामी कवि निल्स-आस्लक वाल्कियापाया की पंक्तियों का उद्धरण देते हुए कहा, “भूमि तब अलग हो जाती है जब आप जानते हैं कि यहां आपकी जड़ें और पूर्वज हैं।”

नीतिगत मसौदे और प्राथमिक विषय
बैठक में प्रतिनिधियों ने पारंपरिक भूमि उपयोग, संसाधन प्रबंधन, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और स्थानिक नियोजन प्रक्रियाओं में आदिवासी ज्ञान को शामिल करने के दिशा-निर्देशों पर चर्चा की। इसके अलावा निकाय के कार्यप्रणाली ढांचे और निर्णय प्रक्रिया पर भी विचार-विमर्श हुआ, जो आगे की नीतिगत अनुशंसाओं का आधार बनेगा।

बैठक में जैव विविधता वित्त तक समान पहुंच, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं की भागीदारी पर जोर दिया गया। वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के विशेषज्ञों ने प्रत्यक्ष वित्तपोषण तंत्र की सिफारिश की, जिससे स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सके।

पर्यावरणीय बहुपक्षवाद का नया मॉडल
प्रतिभागियों ने माना कि इस उप-संस्थागत निकाय की स्थापना केवल प्रक्रियात्मक सुधार नहीं, बल्कि एक परिवर्तनकारी पहल है। इसने आदिवासी समुदायों को वैश्विक निर्णय-प्रक्रिया में समान स्थान देकर “पर्यावरणीय बहुपक्षवाद” का नया मॉडल प्रस्तुत किया है।

बैठक की ड्राफ्ट रिपोर्ट, जिसमें वित्तीय तंत्र, पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा, और स्थानीय भागीदारी शासन से संबंधित सिफारिशें शामिल हैं, अब 2026 में होने वाले COP-17 सम्मेलन में प्रस्तुत की जाएगी।

संयुक्त राष्ट्र की यह ऐतिहासिक पहल वैश्विक स्तर पर जैव विविधता संरक्षण को अधिक समावेशी, न्यायसंगत और स्थायी बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक नीति निर्माण में शामिल करना न केवल पर्यावरणीय न्याय का विस्तार करेगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अधिक संतुलित और टिकाऊ पृथ्वी की नींव भी रखेगा।

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