मुंबई, 01 अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):
भारत की पारंपरिक हस्तशिल्प धरोहर कोल्हापुरी चप्पल, जिसे महाराष्ट्र और कर्नाटक की सांस्कृतिक पहचान माना जाता है, को GI (Geographical Indication) Tag प्राप्त है। इस GI टैग का पंजीकृत और वैधानिक स्वामित्व केवल दो सरकारी निगमों – LIDCOM (संत रोहिदास लेदर इंडस्ट्रीज एंड चर्मकार डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड) और LIDKAR (डॉ. बाबू जगजीवनराम लेदर इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड) – के पास है। यह स्पष्टता दोनों संस्थाओं के प्रबंध संचालकों द्वारा जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य में दी गई।
GI Tag स्वामित्व को लेकर भ्रम की स्थिति दूर
प्रेस विज्ञप्ति में यह दोहराया गया कि कोल्हापुरी चप्पल GI Tag के किसी भी प्रकार के कानूनी या व्यावसायिक उपयोग का अधिकार केवल इन दोनों निगमों को है। किसी अन्य संस्था या व्यक्ति को इस डिजाइन, ब्रांडिंग या अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है।
प्राडा विवाद की पृष्ठभूमि
जून 2025 में, इटली स्थित लग्ज़री फैशन ब्रांड Prada ने अपने स्प्रिंग/समर 2026 पुरुषों के कलेक्शन के दौरान एक ऐसा सैंडल डिज़ाइन प्रदर्शित किया, जो कोल्हापुरी चप्पल की पारंपरिक बनावट और शैली से अत्यधिक मिलता-जुलता था। सोशल मीडिया और कारीगर समुदायों में इसे लेकर तीव्र प्रतिक्रियाएं देखी गईं।
इस घटनाक्रम के बाद, मुंबई के एक वकील समूह ने प्राडा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसमें GI टैग के उल्लंघन का आरोप लगाया गया।
हालांकि, 16 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि ऐसी कानूनी कार्रवाई का अधिकार केवल GI टैग के पंजीकृत धारकों, यानी LIDCOM और LIDKAR के पास ही है।
विरासत और कारीगरों का संरक्षण भी लक्ष्य
LIDCOM की प्रबंध संचालक प्रेरणा देशभ्रतार और LIDKAR की प्रबंध संचालक के.एम. वसुंधरा ने संयुक्त बयान में कहा, “हमारा उद्देश्य केवल GI टैग की रक्षा करना नहीं है, बल्कि इस विरासत से जुड़े हजारों स्थानीय कारीगरों के आर्थिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा करना भी है।”
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कोल्हापुरी चप्पल की परंपरा 12वीं सदी के संत परंपरा और राजर्षि शाहू महाराज जैसे समाज सुधारकों से जुड़ी हुई है, और इसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित पहचान दिलाना एक दीर्घकालिक उद्देश्य है।
इस विवाद ने एक बार फिर इस बात की आवश्यकता को रेखांकित किया है कि पारंपरिक भारतीय कारीगरी को अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट संस्थाओं के संभावित दोहन से बचाने के लिए GI टैग का संरक्षण और प्रभावी क्रियान्वयन अनिवार्य है।
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