नई फसल की बढ़ती आवक और मांग में सुस्ती से मक्का के भाव कमजोर, बाजार में दबाव बढ़ा

नई दिल्ली, 25 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देशभर की कृषि मंडियों में इस सप्ताह मक्का के दाम दबाव में रहे। नई फसल की लगातार बढ़ती आवक और घरेलू तथा औद्योगिक मांग में सीमित उठाव के चलते बाजार में नरमी बनी हुई है। कई प्रमुख मक्का उत्पादक क्षेत्रों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और तेलंगाना में फसल की तेज आवक से सप्लाई बढ़ी है, लेकिन मांग की गति इसके मुकाबले काफी कम दिख रही है।

पशु चारा उद्योग, स्टार्च और इथेनॉल निर्माताओं की ओर से खरीद पिछले महीने की तुलना में धीमी है, जिससे थोक कारोबारियों में बिकवाली का दबाव देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मक्का की कीमतें कमजोर चल रही हैं, जिसका असर घरेलू भाव पर पड़ रहा है।

मंडियों में भाव क्यों टूटे?
नई फसल की कटाई और आवक से लगभग सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में मक्का की आपूर्ति बढ़ गई है। कटाई के चरम समय में आमतौर पर भाव पर दबाव आता है, लेकिन इस बार मांग भी समानांतर नहीं बढ़ सकी।

चारा उद्योग के कारोबारियों का कहना है कि पोल्ट्री सेक्टर की खरीद पिछले महीनों की तुलना में कमज़ोर है। कई पोल्ट्री फार्म सोया फीड और मिश्रित चारे का उपयोग बढ़ा रहे हैं, जिससे मक्का की खपत में अस्थायी कमी आई है। उधर इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम जारी रहने के बावजूद कई प्लांट पूर्ण क्षमता पर नहीं चल पा रहे, जिससे औद्योगिक खरीद संतुलित बनी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी US और ब्राजील में मक्का की भरपूर उपलब्धता ने global corn prices पर दबाव डाला है। इसका सीधा असर भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्धा पर पड़ा है और विदेशी खरीदारों की मांग सीमित हुई है।

कई राज्यों में भाव MSP से नीचे
कुछ प्रमुख मंडियों में मक्का की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे कारोबार करते देखी गईं, हालांकि बेहतर क्वालिटी की फसल MSP के आसपास बिक रही है।

बिहार और मध्य प्रदेश की कई मंडियों में औसत दाम 1700–1850 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहे, जबकि अच्छी गुणवत्ता वाले माल के लिए 1900–2050 रुपये प्रति क्विंटल तक की बोली मिलती रही।

महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी नई फसल की आवक बढ़ने से दाम नरम रहे। निर्यात मांग सीमित होने से बंदरगाहों पर भी खरीद का दबाव कम है।

क्या आगे भी रहेगा दबाव?
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में भी मक्का के भाव पर दबाव रह सकता है, क्योंकि आवक फरवरी के तीसरे सप्ताह तक चरम पर रहेगी। यदि पशु चारा और इथेनॉल उद्योग की मांग में सुधार नहीं आया तो कीमतों में उल्लेखनीय उछाल की संभावना कम है।

हालांकि विश्लेषकों का यह भी कहना है कि जैसे ही किसानों की पुरानी बिकवाली थम जाएगी और बाजार में गुणवत्तापूर्ण माल की उपलब्धता कम होने लगेगी, तब मामूली सुधार देखने को मिल सकता है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कीमतों में स्थिरता भी घरेलू बाजार को समर्थन दे सकती है।

एक्सपर्ट की सलाह
विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि जिन किसानों के पास उच्च गुणवत्ता की फसल है, वे तत्काल बिक्री के बजाय कुछ समय प्रतीक्षा कर सकते हैं। वर्तमान में आवक अधिक होने के चलते बाजार दबाव में है, लेकिन मार्च–अप्रैल के दौरान कीमतें स्थिर होने की संभावना है। जिन क्षेत्रों में स्थानीय व्यापारियों की मांग सीमित है, वहाँ किसान समूहों और सहकारी समितियों के माध्यम से सामूहिक बिक्री का विकल्प भी लाभदायक हो सकता है।

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