नई दिल्ली, 10 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): वर्ल्ड बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि ग्लोबल कमोडिटी-बाजार अगले दो-तीन सालों में ज्यादा कमजोर हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में करीब 12 % तथा 2026 में लगभग 5 % तक समग्र कमोडिटी कीमतों में गिरावट आने की संभावना है, जिससे यह दशक में अब तक का सबसे निचला स्तर हो सकता है।
इस गिरावट के कई कारण हैं – वैश्विक आर्थिक वृद्धि की कमी, ऊर्जा एवं अन्य कच्चे माल की आपूर्ति में वृद्धि, तथा व्यापार व नीतिगत अनिश्चितताएँ।
ऊर्जा एवं धातुओं से लेकर कृषि तक
रिपोर्ट में ऊर्जा श्रेणी में सबसे तीव्र गिरावट की बात की गई है। उदाहरण के लिए, क्रूड ऑयल (ब्रेंट) की कीमतें 2025 में लगभग 64 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान है और 2026 में घटकर 60 डॉलर प्रति बैरल तक आ सकती हैं। इसी तरह कोयले की कीमतें 2025 में लगभग 27 % और 2026 में और गिरने की संभावना जताई गई है।
धातुओं में भी गिरावट की प्रवृत्ति है। ब्याज-उद्योग की धीमी गति और चीन की संपत्ति-सेक्टर की चुनौतियों को कारण बताया गया है।
कृषि-उपज की श्रेणी में भी कीमतों में गिरावट की संभावना है। उदाहरण के लिए दवाओं एवं खाद्य तेलों सहित खाद्य कमोडिटी इंडेक्स में 2025 में ~7 % की गिरावट आने का अनुमान है, और 2026 में यह गिरावट सीमित रहने की संभावना है।
भारत पर असर
भारत के लिए यह खबर दो तरह से महत्वपूर्ण है। उपभोक्ता-स्तर पर देखें तो कमोडिटी की कीमतों में गिरावट विशेष रूप से खाद्य एवं ऊर्जा-उपजों में महंगाई को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ सकती है। वास्तव में, भारत में पिछले कुछ तिमाहियों में सब्जी, दाल आदि की कीमतों में कमी आई है।
लेकिन दूसरा पहलू यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि-उपज की कीमतों में लगातार गिरावट से खेती-आय को दबाव हो सकता है। अनाज, तिलहन और दलहन जैसे क्षेत्रों में कीमतों का सीमित होना या गिरावट किसानों की आय को प्रभावित कर सकता है। इन परिस्थितियों में सरकार और नीति-निर्माताओं के सामने यह चुनौती है कि उपभोक्ता राहत और कृषि आजीविका के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
नीतिगत चुनौतियाँ क्या हैं?
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कमोडिटी कीमतों में गिरावट विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए जोखिम भी हो सकती है। वर्ल्ड बैंक का कहना है कि ग्लोबल बढ़ती अस्थिरता, व्यापार-तनाव और कच्चे माल की मांग में कमी से दो-तिहाई से अधिक विकासशील देशों को आर्थिक वृद्धि में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। भारत को अब यह देखना होगा कि किस प्रकार ग्रामीण मांग एवं कृषि-संग्रह को सुचारु रखने के लिए नीति-उपाय अपनाए जायें — जैसे बेहतर खरीद नीतियाँ, निर्यात-मार्केट का विस्तार, तथा कृषि-मर्जिन को सुरक्षित रखने के प्रयास।
कुल मिलाकर, कमोडिटी की कीमतों में गिरावट एक सकारात्मक संकेत है उपभोक्ताओं के लिए क्योंकि यह महंगाई को नियंत्रित कर सकती है। लेकिन कृषि-उपजों पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह बड़ा चैलेंज भी है, खासकर किसानों की आय के लिए। भारत को इस अवसर को रणनीतिक तौर पर उपयोग करना होगा ताकि उपभोक्ता-स्तर पर राहत मिल सके और साथ ही कृषि क्षेत्र की स्थिरता बनी रहे।
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