लखनऊ, 28 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि ब्यूरो): उत्तर प्रदेश में इस वर्ष रबी सीजन में किसानों ने बड़े पैमाने पर गेहूं की बुवाई की है। जैसे-जैसे फसल बढ़ रही है, उसमें रोगों और कीटों के हमले का खतरा भी बढ़ गया है। इन खतरों को देखते हुए, उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने किसानों के लिए एक विस्तृत एडवाइजरी (Advisory) जारी की है। कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि वे अपनी गेहूं की फसल को रोगों से बचाने के लिए समय रहते आवश्यक उपाय करें।
गेहूं की फसल को खतरा: प्रमुख रोग और कीट
कृषि विभाग के अधिकारियों ने विशेष रूप से पीला रतुआ (Yellow Rust) और दीमक (Termite) के हमले से गेहूं की फसल को बचाने की सलाह दी है।
1. पीला रतुआ (Yellow Rust) रोग
यह गेहूं की फसल का एक प्रमुख फफूंद जनित रोग है, जो तापमान और नमी बढ़ने पर तेज़ी से फैलता है।
लक्षण: इस रोग में गेहूं के पत्तों पर पीले रंग की धारियाँ दिखाई देने लगती हैं। जब इन पत्तियों को हाथ से रगड़ा जाता है, तो हाथ में पीले रंग का पाउडर लग जाता है, जो हल्दी जैसा दिखता है।
नुकसान: यदि समय पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह रोग फसल को भारी नुकसान पहुँचा सकता है और उपज को 70% तक कम कर सकता है।
2. दीमक (Termite) कीट
दीमक गेहूं की जड़ों को खाकर फसल को नुकसान पहुँचाती है, जिससे पौधा सूख जाता है।
नुकसान: यह कीट अंकुरण से लेकर फसल की परिपक्वता तक कभी भी हमला कर सकता है, लेकिन शुरुआती अवस्था में यह सबसे ज़्यादा हानिकारक होता है।
कृषि विभाग की रोकथाम और बचाव की सलाह
कृषि विभाग ने किसानों से इन रोगों और कीटों के लक्षणों पर लगातार नज़र रखने और तुरंत कार्रवाई करने का आग्रह किया है:
पीला रतुआ से बचाव:
रासायनिक उपचार: यदि फसल पर पीला रतुआ के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत प्रोपीकोनाजोल (Propiconazole) 25% EC नामक फफूंदनाशक दवा का प्रयोग करें।
मात्रा: इस दवा की 200 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
दीमक से नियंत्रण:
बीज उपचार: बुवाई से पहले क्लोरोपायरीफॉस (Chlorpyriphos) की 20 EC दवा का उपयोग करके बीज उपचार (Seed Treatment) करना सबसे प्रभावी उपाय है।
बुवाई के बाद उपचार: यदि बुवाई के बाद दीमक का हमला हो, तो क्लोरोपायरीफॉस दवा की 2.5 लीटर मात्रा को 5 लीटर पानी में मिलाकर, बालू या रेत में मिलाकर खेत में छिड़काव करें और फिर हल्की सिंचाई करें।
कृषि विभाग ने किसानों को यह भी सलाह दी है कि वे रोग प्रतिरोधी (Disease Resistant) गेहूं की किस्मों का ही चयन करें और अपनी फसल की लगातार निगरानी करते रहें, ताकि किसी भी रोग के शुरूआती लक्षण दिखते ही उसका तुरंत निवारण किया जा सके।
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