मुंबई, 13 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता रुपया अब आम रसोई पर सीधा असर डालने की तैयारी में है। भारत अपनी जरूरत का करीब 60% खाद्य तेल आयात करता है और ऐसे में रुपये की गिरावट से खाने के तेल महंगे होने की आशंका तेज हो गई है।
पिछले 6 महीनों में रुपये में करीब 6% की गिरावट दर्ज की गई है और यह अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तर को छू चुका है। कमजोर रुपये के कारण आयात महंगा हो गया है, जिसका असर आने वाले दिनों में सरसों, सोयाबीन, पाम और सनफ्लावर ऑयल जैसी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर दिख सकता है।
आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल भारत ने करीब 160 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया था, जिस पर लगभग ₹1.60 लाख करोड़ का खर्च आया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहले से ही खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी बनी हुई है। ऐसे में रुपये की कमजोरी ने घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ने का जोखिम और बढ़ा दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खाद्य तेलों के दाम और चढ़ते हैं, तो इसका असर खुदरा महंगाई दर (Inflation) पर भी दिख सकता है, क्योंकि खाने का तेल रोजमर्रा के उपभोग का अहम हिस्सा है।
रुपया क्यों दबाव में?
शुक्रवार को कारोबार की शुरुआत में रुपया 90.56 प्रति डॉलर तक फिसल गया। बाजार सूत्रों के मुताबिक, डिफेंस और ब्याज भुगतान के लिए डॉलर की खरीदारी और तेल कंपनियों की लगातार डॉलर डिमांड ने रुपये पर दबाव बढ़ाया।
हालांकि, मोदी-ट्रंप वार्ता के बाद न्यूयॉर्क में रुपया कुछ मजबूत हुआ और गुरुवार के 90.36/$ के मुकाबले 90.15/$ तक पहुंचा। लेकिन ट्रेड डील को लेकर कोई ठोस संकेत नहीं मिलने से घरेलू बाजार में ट्रेडर्स निराश नजर आए।
डीलर्स का कहना है कि बाजार में लिक्विडिटी कम है और छोटे ट्रेडर्स की गतिविधियों से उतार-चढ़ाव बढ़ा हुआ है। सुबह के कारोबार में RBI के अलावा प्राइवेट पार्टियों की ओर से भी डॉलर बिकवाली देखने को मिली।
कुल मिलाकर, अगर रुपये में कमजोरी का यह दौर जारी रहता है, तो आने वाले दिनों में खाने के तेल की कीमतें आम आदमी की जेब पर भारी पड़ सकती हैं।
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