मुंबई, 27 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत में प्याज की खेती करने वाले किसान एक बार फिर बंपर उत्पादन के कारण कीमतों में आई भारी गिरावट से गंभीर संकट में हैं। जिस प्याज की ऊंची कीमतों से उपभोक्ता परेशान होते हैं, उसी प्याज का अति-उत्पादन अब किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल कर रहा है।
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, साल 2024-25 में प्याज की पैदावार 307.72 लाख टन होने का अनुमान है। यह पिछले वर्ष के 242.67 लाख टन उत्पादन से करीब 65 लाख टन अधिक है। इसी अत्यधिक आपूर्ति (Surplus) के चलते, किसानों को उनकी मेहनत का सही दाम नहीं मिल पा रहा है।
कीमतों में ज़बरदस्त गिरावट का हाल
प्याज की मंडियों में भाव लगातार नीचे जा रहे हैं, जबकि उत्पादन की लागत बढ़ रही है।
औसत लागत: एक एकड़ प्याज की खेती में उपज की ढुलाई समेत कुल खर्च करीब ₹1,36,500 आता है, यानी पैदावार अच्छी होने पर भी औसत लागत ₹10 से ₹12 प्रति किलोग्राम तक आती है।
मौजूदा मंडी भाव: थोक बाज़ारों में प्याज की न्यूनतम कीमत ₹351 प्रति क्विंटल (यानी ₹3.5 प्रति किलो) तक पहुँच गई है।
मध्य प्रदेश की मंडियों में प्याज ₹2 से ₹8 प्रति किलो तक बिक रहा है।
महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी में अधिकतम दाम ₹1330 प्रति क्विंटल (₹13.3 प्रति किलो) तक बोला जा रहा है।
कई किसान तो प्याज को ₹1 प्रति किलो या इससे भी कम दाम में बेचने को मजबूर हैं, जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है।
संकट के मुख्य कारण और किसान की माँग
बंपर उत्पादन के बाद भी बाज़ार में प्याज की कीमतें कई कारणों से अस्थिर रहती हैं:
उत्पादन और बाज़ार का असंतुलन: जब भी रकबा (Sowing Area) बढ़ता है और उत्पादन अच्छा होता है, तो बाज़ार में मांग से ज़्यादा सप्लाई हो जाती है, जिससे कीमतें गिर जाती हैं।
सरकारी नीतियों की अनिश्चितता: पिछले दिनों सरकार ने प्याज के निर्यात पर 20% शुल्क लगाया था, जिसे बाद में 1 अप्रैल 2025 से हटा दिया गया। नीतिगत फैसलों में बार-बार बदलाव से किसान और व्यापारी दोनों ही असमंजस में रहते हैं।
भंडारण की कमी: पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण भंडारण सुविधाओं की कमी के चलते किसान अपनी फसल को लंबे समय तक रोक नहीं पाते और कम दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं।
किसानों की मांग
इस संकट के बीच, किसान संगठनों की मुख्य मांगें हैं:
प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कम से कम ₹3,000 प्रति क्विंटल तक सुनिश्चित किया जाए।
सरकार नाफेड (NAFED) जैसी एजेंसियों के माध्यम से सीधे खुले बाज़ार (Open Market) से खरीद करे, न कि केवल किसान उत्पादक कंपनियों (FPC) के माध्यम से।
सरकार के सामने बड़ी चुनौती
सरकार को उपभोक्ताओं और किसानों के बीच संतुलन बनाना होता है। जब कीमतें बहुत अधिक होती हैं तो सरकार हस्तक्षेप करती है, लेकिन जब कीमतें गिरती हैं तो किसान संकट में आ जाता है।
अब सरकार के सामने चुनौती यह है कि वह बढ़ी हुई आपूर्ति को बाज़ार से हटाए बिना, किसानों को उनकी लागत से कम दाम पर फसल बेचने से कैसे रोके। निर्यात शुल्क हटाना एक कदम है, लेकिन किसानों को तुरंत राहत पहुँचाने के लिए सरकारी खरीद योजना और भंडारण क्षमता को बढ़ाना आवश्यक होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बंपर उत्पादन किसानों के लिए लाभ बने, न कि आपदा।
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