Himachal हिमाचल प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में एक अनूठी तकनीक का विकास किया है, जिससे पराली का सही प्रबंधन किया जा सकता है और साथ ही आलू उत्पादन में भी वृद्धि हो सकती है। इस तकनीक का लाभ किसानों को कम मेहनत और अधिक मुनाफा के रूप में मिल रहा है। धौलाकुआं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने पराली (Stubble) से ढककर आलू की खेती करने की एक नई प्रक्रिया अपनाई है, जिससे आलू की किस्म ‘कुफरी नीलकंठ’ का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
पराली से प्रदूषण की समस्या का समाधान
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में धान की पराली जलाने से प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है। साथ ही, यह स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालता है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। धौलाकुआं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने पराली का प्रबंधन करते हुए उसे आलू की खेती के लिए उपयोगी बना दिया है। इस तकनीक से खेतों में पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और साथ ही पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता।
कुफरी नीलकंठ आलू की खेती का नया तरीका
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के धौलाकुआं कृषि विज्ञान केंद्र में इस नई तकनीक को विकसित किया गया है। इस तकनीक के तहत पराली का उपयोग आलू की खेती के लिए किया जाता है, जिससे खेती के लिए किसी भी तरह की जोताई की आवश्यकता नहीं पड़ती। वैज्ञानिकों ने कुफरी नीलकंठ किस्म के आलू की खेती पर विशेष ध्यान दिया है, जो प्राकृतिक तरीके से उगाई जाती है। इस पद्धति में खेत में पराली डालकर उसके ऊपर आलू के बीज रखे जाते हैं और फिर उन्हें ढक दिया जाता है।
इस तकनीक के अनुसार, खेत की जुताई नहीं की जाती और न ही ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके बजाय, आलू को पराली के नीचे उगाया जाता है, जिससे भूमि की नमी बनी रहती है और खेत में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। इस प्रक्रिया में रासायनिक खादों का भी उपयोग नहीं किया जाता, जिससे फसल पूरी तरह से प्राकृतिक रहती है और प्रदूषण का स्तर भी कम होता है।
किसानों के लिए कम लागत और अधिक लाभ
इस तकनीक का प्रमुख फायदा यह है कि इसमें किसानों को कम मेहनत और कम लागत में अधिक लाभ होता है। पराली का सही उपयोग करने से न सिर्फ आलू उत्पादन में वृद्धि होती है, बल्कि किसानों का समय, मजदूरी और अन्य खर्चे भी बचते हैं। आलू की यह किस्म तीन माह में तैयार हो जाती है, और इस अवधि में किसानों को किसी तरह की अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता नहीं होती है।
आलू की फसल को तैयार करने के लिए तीन बार सिंचाई की जाती है, लेकिन अगर बारिश हो जाए तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। इससे किसानों के पानी के खर्चे में भी बचत होती है। इसके अलावा, खेत में पराली के सड़ने से प्राकृतिक उर्वरक की स्थिति बन जाती है, जो खेत की मिट्टी को भी सुधारता है और उत्पादन में वृद्धि करता है।
धूल व प्रदूषण की समस्या का समाधान
पंजाब, हरियाणा और Uttar Pradesh में पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश ने इसे एक अवसर में बदल दिया है। धौलाकुआं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार, पराली का डी-कंपोज़न (सड़ना) खेत में ही होता है, जिससे Pollution से बचा जा सकता है और भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि होती है।
कुफरी नीलकंठ आलू के स्वास्थ्य लाभ
Kufri Neelkanth आलू न केवल स्वाद में अच्छा होता है, बल्कि यह सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी है। इस आलू में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर के हानिकारक तत्वों को निष्क्रिय कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, यह दिल की बीमारियों और कुछ प्रकार के कैंसर से बचाव करने में भी सहायक है। शुगर के मरीज भी इस आलू को खा सकते हैं, क्योंकि यह उनकी सेहत पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालता। आलू का हल्का बैंगनी रंग इसे और भी खास बनाता है।
समय की बचत और उच्च गुणवत्ता वाली फसल
कुफरी नीलकंठ आलू को प्राकृतिक तरीके से उगाना किसानों के लिए एक बड़ा लाभ है, क्योंकि इसमें खेती के दौरान किसी भी तरह की रासायनिक तत्वों का प्रयोग नहीं किया जाता। साथ ही, यह Potato अधिक समय तक ताजा रहता है और उसकी भंडारण क्षमता भी अधिक होती है। इसकी विशेषता यह है कि यह खेतों में कम समय में तैयार हो जाता है, जिससे किसानों को अधिक बार फसल लेने का अवसर मिलता है।
उद्योगों में पराली का उपयोग
हिमाचल प्रदेश में पराली का उपयोग सिर्फ आलू की खेती तक सीमित नहीं है। पराली से ग्रामीण क्षेत्रों में चटाइयां बनाना, और औद्योगिक क्षेत्रों में गत्ते की फैक्ट्री में पराली का भूसा बनाना भी एक सामान्य प्रक्रिया बन चुकी है। इससे पराली का सही उपयोग होने के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या में भी कमी आ रही है।hi
इस प्रकार, Himachal Pradesh ने पराली प्रबंधन की एक नई दिशा दिखाई है, जो न केवल किसानों के लिए फायदेमंद है बल्कि पर्यावरण को भी बचाने में सहायक है।