मुंबई, 04 अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):
Business News: गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) ने अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल यानी ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) की कीमतों के लिए अपना पूर्वानुमान बरकरार रखा है। बैंक ने वर्ष 2025 के लिए औसत मूल्य 86 डॉलर प्रति बैरल बनाए रखा है। हालांकि, अपनी ताज़ा रिपोर्ट में गोल्डमैन ने आगाह किया है कि वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और कमजोर मांग की स्थिति बाजार के लिए जोखिम पैदा कर सकती है।
गोल्डमैन का मानना है कि उत्पादन में कटौती और आपूर्ति में संतुलन से फिलहाल कीमतों को समर्थन मिल रहा है। ओपेक+ देशों की अनुशासित आपूर्ति रणनीति ने वैश्विक तेल बाजार को स्थिर बनाए रखा है। लेकिन यदि चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख उपभोक्ता देशों में आर्थिक गतिविधियाँ धीमी पड़ती हैं, तो मांग में गिरावट आ सकती है जिससे कीमतों पर दबाव बढ़ेगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव, यमन में हाउती विद्रोहियों की गतिविधियाँ और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक घटनाक्रम वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा कुछ तेल उत्पादकों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भी बाजार की अनिश्चितता को बढ़ा दिया है।
मांग पक्ष की बात करें तो चीन की अर्थव्यवस्था उम्मीद से धीमी गति से उभर रही है, जबकि यूरोप में उच्च ब्याज दरों के कारण औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट देखी जा रही है। साथ ही, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के स्थिर होने के बाद डीज़ल और अन्य डिस्टिलेट्स की खपत में भी संतुलन आ गया है।
तेल बाजार इस समय एक प्रकार की संतुलन स्थिति में है — एक ओर जहां ओपेक+ की नीति से कीमतों को सहारा मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर मांग की कमजोर स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। गोल्डमैन सैक्स ने निवेशकों को सलाह दी है कि वे ऊर्जा क्षेत्र में थोड़ा सतर्क होकर निवेश करें, विशेष रूप से डेरिवेटिव्स और उच्च अस्थिरता वाले स्टॉक्स में।
तीसरी तिमाही के आँकड़ों के अनुसार, ब्रेंट क्रूड का औसत अनुमान 86 डॉलर प्रति बैरल और डब्ल्यूटीआई का 81 डॉलर प्रति बैरल पर है। वैश्विक तेल की मांग में साल-दर-साल लगभग 1.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन की वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन यह भी संभावित मंदी की आशंका से जुड़ी हुई है।
गोल्डमैन की यह रिपोर्ट संकेत देती है कि आने वाले महीनों में तेल की कीमतें उत्पादन पक्ष के कारण स्थिर रह सकती हैं, लेकिन अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती जारी रहती है तो मांग में गिरावट के कारण कीमतें नीचे आ सकती हैं।
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