Agri News: बिहार कृषि विश्वविद्यालय को सतत कृषि में मिला राष्ट्रीय पुरस्कार, 45,000 किसानों को मिला लाभ

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पटना , 11 अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर ने सतत कृषि के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नई दिल्ली में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सतत कृषि सम्मेलन में विश्वविद्यालय को चार प्रतिष्ठित नवाचार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इस सम्मान ने न सिर्फ संस्थान की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है, बल्कि बिहार के किसानों के लिए भी एक नई उम्मीद जगाई है।

सम्मेलन में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने बीएयू को ‘पुनर्योजी कृषि पुरस्कार’ प्रदान किया। यह पुरस्कार 2019 में शुरू किए गए विश्वविद्यालय के जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम (CRA Program) के लिए दिया गया, जिसने न्यूनतम जुताई, जैविक आदानों के प्रयोग, जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य सुधार और कार्बन उत्सर्जन में कमी जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया है। इस पहल का लाभ राज्य के 18 जिलों के 45,000 से अधिक किसानों को मिला है।

इसके साथ ही बीएयू को ‘जल प्रबंधन में उत्कृष्टता पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ। यह सम्मान वर्षा आधारित और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों के लिए दिया गया। विश्वविद्यालय ने तालाबों के पुनरुद्धार, रिमोट सेंसिंग के ज़रिए फसल नियोजन, और नाइट्रेट प्रदूषण की मैपिंग जैसी पहलें शुरू कीं, जिनसे भूजल पुनर्भरण और जल गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। ‘जैविक खेती उत्कृष्टता पुरस्कार’ के अंतर्गत बीएयू ने वर्मीकम्पोस्ट और अजोला की खेती जैसी विधियों को बढ़ावा दिया, जिससे 5,000 से अधिक किसानों को टिकाऊ खेती के माध्यम से लागत कम करने और बेहतर उत्पादन पाने में सहायता मिली।

इसके अलावा, ‘अपशिष्ट प्रबंधन नवाचार पुरस्कार’ बीएयू के रोहतास स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) को मिला, जिसने कॉम्फेड के साथ साझेदारी कर धान की पराली से पुआल की गांठें बनाने की तकनीक विकसित की। इससे किसानों को पराली जलाने की आवश्यकता में कमी आई और पशुओं के लिए चारे का विकल्प भी उपलब्ध हुआ।

BAU के कुलपति प्रो. डी. आर. सिंह ने कहा कि “जलवायु-अनुकूल और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के हमारे निरंतर प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। हमारे वैज्ञानिक किसान हितैषी नवाचारों में लगातार लगे हैं, ताकि खेती लाभकारी, पर्यावरण-अनुकूल और दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ बन सके।”

बीएयू की इस उपलब्धि को राज्य सरकार भी एक मॉडल के रूप में देख रही है, और इसके सफल कार्यक्रमों को अन्य जिलों में लागू करने की योजना पर काम किया जा रहा है।

 

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