नई दिल्ली, 30 जुलाई (कृषि भूमि ब्यूरो):
ऑस्ट्रेलिया (Australia) से आई ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, वहां गेहूं (Wheat) उत्पादन में एक ऐतिहासिक उछाल देखा गया है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बावजूद, विशेष रूप से पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में वर्षा में 30 वर्षों में लगभग 20% की गिरावट होने के बावजूद, 2015 के बाद से गेहूं की पैदावार दोगुनी हो चुकी है।
ऑस्ट्रेलिया की यह सफलता भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है, जहां जलवायु परिवर्तन (Climate change) , मानसून की अनिश्चितता और मृदा क्षरण (Soil Erosion) जैसे मुद्दे किसानों के सामने बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने कैसे पाई यह सफलता?
ऑस्ट्रेलियाई किसानों ने पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाया, जिनमें प्रमुख हैं:
* बिना जुताई की खेती (No-Till Farming) : इससे मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
* फसल चक्र प्रणाली (Crop Rotation): इससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है और कीटों व रोगों पर नियंत्रण रहता है।
* मृदा सुधार (Soil Improvement): जैविक तरीकों और पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति से मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर हुआ।
इन प्रयासों के चलते 1980 के दशक की तुलना में राष्ट्रीय गेहूं उत्पादन में लगभग 15 मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया अब वैश्विक गेहूं निर्यात में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरा है।
भारत के लिए क्या हैं सबक?
भारत में भी कई राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन में अग्रणी हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण उत्पादन क्षमता पर दबाव है।
भारतीय संदर्भ में संभावित उपाय:
* संवहनीय खेती (Sustainable Farming) को बढ़ावा देना
* मिट्टी परीक्षण और सुधार योजनाओं का क्रियान्वयन
* प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा के ज़रिए किसानों को जागरूक बनाना
* सरकारी योजनाओं को वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों से जोड़ना
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत ऑस्ट्रेलिया की तरह दीर्घकालिक रणनीति अपनाए और नवाचारों को प्राथमिकता दे, तो जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बावजूद उत्पादन को न सिर्फ बनाए रखा जा सकता है, बल्कि उसमें बढ़ोतरी भी की जा सकती है।
ऑस्ट्रेलिया की यह उपलब्धि भारत के लिए एक चेतावनी और अवसर दोनों है। जहां जलवायु अस्थिरता भविष्य की खेती को चुनौती दे रही है, वहीं वैज्ञानिक सोच और स्मार्ट फार्मिंग के जरिए भारत भी कृषि आत्मनिर्भरता और निर्यात क्षमता को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।
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