मुंबई, 22 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): महाराष्ट्र के किशमिश उद्योग के लिए यह साल बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। राज्य में बार-बार हुई बेमौसम बारिश ने अंगूर की खेती को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है, जिसका सीधा असर अब निर्यात के आंकड़ों में दिखने लगा है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से नवंबर 2025 के बीच महाराष्ट्र से केवल 6,309 टन किशमिश का ही निर्यात हो सका है।
नासिक और सांगली में सबसे ज्यादा नुकसान
अंगूर और किशमिश उत्पादन के प्रमुख केंद्र माने जाने वाले नासिक और सांगली जिलों में बेमौसम बारिश का असर सबसे ज्यादा देखने को मिला है। स्थानीय किसानों और प्रसंस्करण इकाइयों के अनुसार, मानसून के दौरान हुई भारी बारिश और उसके बाद सितंबर-अक्टूबर में हुई तेज फुहारों ने फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाया।
सितंबर और अक्टूबर का समय अंगूर के पकने और उन्हें सुखाने के लिए सबसे अहम माना जाता है, लेकिन इसी दौरान हुई बारिश ने न केवल कटाई में देरी की, बल्कि फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित कर दी।
अंतरराष्ट्रीय मांग बनी हुई, लेकिन आपूर्ति घटी
कम उत्पादन और गुणवत्ता में गिरावट के बावजूद महाराष्ट्र से किशमिश का निर्यात पूरी तरह थमा नहीं है। राज्य ने मोरक्को, रोमानिया, रूस, सऊदी अरब, वियतनाम, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों को किशमिश की आपूर्ति जारी रखी है।
हालांकि, निर्यातकों का कहना है कि मौसम की अनिश्चितता के चलते ‘एक्सपोर्ट ग्रेड’ किशमिश की उपलब्धता काफी घट गई है। इसका नतीजा यह है कि कई प्रसंस्करण इकाइयों को अपनी क्षमता से काफी कम स्तर पर काम करना पड़ रहा है।
अंगूर की कमी से कीमतों में तेजी के संकेत
उद्योग जगत का मानना है कि अंगूर की बेलों को हुए नुकसान के कारण इस सीजन में बाजार में अंगूर की कुल उपलब्धता कम रह सकती है। इसका असर ताजा अंगूरों की बिक्री और किशमिश प्रसंस्करण—दोनों पर पड़ेगा।
एक निर्यातक के अनुसार, फसल का नुकसान इतना अधिक है कि इसका प्रभाव पूरी वैल्यू चेन में दिखाई देगा। हालांकि, किसानों और व्यापारियों को घरेलू बाजार से कुछ उम्मीदें हैं। आपूर्ति कम रहने और मांग स्थिर बने रहने की स्थिति में आने वाले महीनों में ताजा अंगूर और किशमिश की कीमतों में तेजी आ सकती है, जिससे निर्यात में हुए नुकसान की आंशिक भरपाई संभव है।
जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौती
भारत के कुल अंगूर और किशमिश उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इस सीजन में मौसम की मार ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलें जलवायु परिवर्तन और मौसम के बदलते मिजाज के प्रति कितनी संवेदनशील हैं। महाराष्ट्र का मौजूदा संकट कृषि क्षेत्र में मौसम आधारित जोखिमों की बढ़ती गंभीरता की ओर भी इशारा करता है।
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