खेती की राष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए क्या हो सकती है चौहान की रणनीति?

देश के सबसे अधिक समय तक काम करने वाले मुख्यमंत्रियों में शामिल शिवराज सिंह चौहान को अब मध्य प्रदेश की राजनीति से हटाकर राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीणों और किसानों को साधने की जिम्मेदारी दी गई है। जब से उन्हें कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय का पद दिया गया है, तब से उनकी काफी चर्चा हो रही है। वह एक जन नेता हैं, लोगों की नब्ज को अच्छी तरह समझते हैं और लोग उन्हें प्यार से “मामा” कहते हैं। कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना ​​है कि शिवराज के ‘राज’ में कृषि विभाग की स्थिति सामान्य होने की संभावना है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे सरकारी नेताओं के स्थान पर कृषि और ग्रामीण विकास के लिए अपने स्वयं के दृष्टिकोण के साथ काम करें। खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री ने चौहान को कृषि मंत्री ऐसे ही नहीं बनाया है, बल्कि उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन उन पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है।

ऐसे ही कई कृषि कार्य शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में किये, जिनकी सफलता का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए। 2005-06 और 2018-19 के बीच, मध्य प्रदेश की कृषि जीडीपी प्रति वर्ष 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी। इनमें से पिछले तीन वर्ष और भी उल्लेखनीय रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश में कृषि विकास दर राष्ट्रीय औसत 4.7 प्रतिशत की तुलना में 11.5 प्रतिशत बढ़ी है। उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश की कृषि विकास दर 27.2 प्रतिशत तक पहुंची, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

भावांतर योजना :
एमएसपी और बाजार मूल्यों के बीच के अंतर को पाटकर किसानों को वित्तीय घाटे से बचाने के लिए, शिवराज सिंह चौहान ने देश में पहली बार भावान्तर भरपाई योजना नामक योजना शुरू की है। श्री चौहान ने 16 अक्टूबर, 2017 को इसे लॉन्च किया। राज्य सरकार ने शुरुआत में आठ फसलों के लिए कार्यक्रम शुरू किया, जिसे बाद में विस्तारित किया गया। हरियाणा सरकार ने इसे अपने यहां भी लागू कर दिया है।

मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना:
प्रधानमंत्री क‍िसान सम्मान न‍िध‍ि की तर्ज पर श‍िवराज स‍िंह चौहान ने अपने सूबे के क‍िसानों को राज्य की ओर से भी डायरेक्ट सपोर्ट देना शुरू क‍िया। इसके तहत दो क‍िस्तों में 4000 रुपये की मदद दी जाने लगी। इसकी शुरुआत उन्होंने सितंबर 2020 में की थी। इस तरह वहां के क‍िसानों को सालाना 10,000 रुपये की डायरेक्ट सपोर्ट म‍िलनी शुरू हो गई। बाद में इसी तरह की योजना को महाराष्ट्र ने कॉपी क‍िया, हालांक‍ि वहां राज्य ने भी 6000 रुपये अपनी तरफ से द‍िए। मध्य प्रदेश की ही तर्ज पर अब राजस्थान में पीएम क‍िसान सम्मान न‍िध‍ि के साथ राज्य सरकार भी 2000 रुपये देने जा रही है। यानी वहां के क‍िसानों को सालाना अब 8000 रुपये म‍िलेंगे।

चौहान के आगे चुनौतियां:
देश के नए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसान आंदोलन को संभालना है। गैर राजनीतिक किसान मोर्चा यूनियन के नेतृत्व में किसान अपनी मांगों को लेकर करीब 125 दिनों से शंभू-कनौली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा अब सबसे आगे है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 13 महीने से चल रहे अभियान को खत्म करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे आकर अपनी गलतियां स्वीकार करनी पड़ीं। अब देखना यह है कि मौजूदा एमएसपी गारंटी आंदोलन का समाधान शिवराज कैसे निकालेंगे। चुनौती इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के आम चुनाव में किसानों का गुस्सा भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ा। उन्हें काफी सीटें गंवानी पड़ीं।

क्या दाम पर होगा काम? :
कृष‍ि क्षेत्र के ल‍िए श‍िवराज स‍िंह चौहान की कई सफलताएं हैं, लेक‍िन द‍िल्ली में उन्हें असली चुनौत‍ियों से रूबरू होना पड़ेगा। खासतौर पर कृष‍ि उपज के दाम के मोर्चे पर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृष‍ि मंत्रालय को क‍िसानों की आय बढ़ाने का लक्ष्य द‍िया हुआ है। लेक‍िन इस रास्ते में वाण‍िज्य और उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आते हैं। जैसे ही क‍िसी फसल का दाम बढ़ता है तुरंत उपभोक्ता और वाण‍िज्य मंत्रालय उसे ग‍िराने की जुगत में जुट जाते हैं। या तो एक्सपोर्ट बैन करवा देते हैं या फ‍िर इंपोर्ट या एक्सपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने-घटाने का खेल शुरू कर देते हैं। ज‍िससे क‍िसानों का नुकसान होता है। उससे उपजी नाराजगी की वजह से चुनाव में पार्टी को नुकसान झेलना पड़ता है।

हमने देखा है क‍ि कैसे प्याज एक्सपोर्ट बैन के मामले में उपभोक्ता मामले मंत्रालय की सबसे ज्यादा चली और कृष‍ि मंत्रालय या तो मौन रहा या अध‍िकारी सरकार के सामने अपनी बात मजबूती से नहीं रख पाए। ऐसे में अब देखना यह है क‍ि दूसरे मंत्रालयों में क‍िसानों को सीधे प्रभाव‍ित करने वाले जो फैसले ल‍िए जा रहे हैं उसमें श‍िवराज क‍ितना दखल देकर क‍िसानों के ह‍ितों को सुरक्ष‍ित रख पाएंगे।

बेशक उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का काम लोगों को महंगाई से बचाना है, लेक‍िन केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय इतना दखल तो दे ही सकता है क‍ि महंगाई कम करने का बोझ स‍िर्फ क‍िसानों के ही कंधों पर क्यों आए. इसके ल‍िए क्यों क‍िसानों का नुकसान हो। दरअसल, क‍िसानों को आर्थ‍िक चोट पहुंचाने वाले फैसले दूसरे मंत्रालय लेते हैं लेक‍िन ठीकरा कृष‍ि वालों के स‍िर फूटता है। बहरहाल, अभी हमें केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय में श‍िवराज की सफलता या असफलता देखने के ल‍िए हम सबको कुछ महीनों का इंतजार करना होगा।

शेयर :

Facebook
Twitter
LinkedIn
WhatsApp

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें

ताज़ा न्यूज़

विज्ञापन

विशेष न्यूज़

Stay with us!

Subscribe to our newsletter and get notification to stay update.

राज्यों की सूची