GST के बावजूद ‘डबल टैक्सेशन’ का बोझ: महाराष्ट्र में अनाज और सब्जियों की सप्लाई ठप, व्यापारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर

मुंबई, 5 दिसंबर, 2025 ( कृषि भूमि डेस्क): पूरे महाराष्ट्र में कृषि उपज मंडी समितियों (APMC) से जुड़े बाज़ारों में अनाज, सब्ज़ियों और दालों की आपूर्ति गंभीर रूप से प्रभावित हो गई है। राज्य भर के व्यापारिक संगठनों ने जीएसटी (GST) लागू होने के बाद भी कृषि उपज पर बाजार उपकर (Market Cess) वसूलने के विरोध में व्यापक हड़ताल शुरू कर दी है। व्यापारियों का कहना है कि यह ‘एक राष्ट्र, एक कर’ (One Nation, One Tax) के सिद्धांत के खिलाफ दोहरा कराधान (Double Taxation) है, जिसके चलते उन्हें व्यापार बंद करने पर मजबूर होना पड़ा है।

क्या है विवाद?

विवाद की जड़ है कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम, 1963 (APMC Act, 1963) और इसके तहत लगने वाला बाजार उपकर (मंडी शुल्क)।

जब केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू किया, तो उसका उद्देश्य देश भर में अधिकांश अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करना था। खाद्यान्न (food grains) जैसी कई कृषि वस्तुओं को जीएसटी के तहत शून्य-दर (0% tax) या छूट प्राप्त है। हालांकि, महाराष्ट्र की APMC समितियां अभी भी अपनी सेवाओं के नाम पर व्यापारियों से 1% तक का उपकर (Cess) वसूल रही हैं।

व्यापारी संगठन, जैसे कि महाराष्ट्र राज्य व्यापारी कृति समिति (Maharashtra Rajya Vyapari Kruti Samiti), का तर्क है कि जब वे पहले ही जीएसटी के दायरे में आ चुके हैं, तो APMC उपकर का भुगतान करना दोहरे कराधान के समान है। इससे माल की लागत बढ़ती है, जिसका अंतिम बोझ उपभोक्ताओं और किसानों पर पड़ता है।

व्यापारियों की प्रमुख मांगें

व्यापारियों ने सरकार के सामने अपनी प्रमुख मांगें रखी हैं:

  1. उपकर की समाप्ति (Abolition of Cess): जिन कृषि वस्तुओं पर जीएसटी लागू है, उन पर APMC उपकर को तत्काल प्रभाव से पूरी तरह समाप्त किया जाए।

  2. अधिनियम में सुधार (APMC Act Reforms): 1963 का यह अधिनियम अब अप्रचलित (obsolete) हो चुका है। व्यापारियों का कहना है कि कई मंडी समितियां पर्याप्त सुविधाएं प्रदान किए बिना भी शुल्क वसूलती हैं, जिससे यह व्यवस्था भ्रष्टाचार का केंद्र बन गई है।

  3. ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business): APMC लाइसेंसों का नवीनीकरण ऑनलाइन किया जाए और अनावश्यक निरीक्षण और दंड के प्रावधानों को हटाया जाए।

किसानों और उपभोक्ताओं पर गहरा प्रभाव

ट्रेड यूनियनों के अनुसार, APMC व्यवस्था अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। दशकों पहले जब यह अधिनियम बना था, तब इसका उद्देश्य किसानों को सही मूल्य दिलाना था।

  • किसानों का नुकसान: अब, जब आपूर्ति अधिक है और मांग सीमित, उपकर लगाने से किसानों को उनकी उपज का कम दाम मिलता है क्योंकि लागत बढ़ जाती है। व्यापारी अब नियामक जटिलताओं से बचने के लिए APMC बाज़ारों को दरकिनार कर रहे हैं।

  • आपूर्ति में रुकावट: थोक और खुदरा बाजारों के बंद होने से, मुंबई की वाशी APMC जैसी प्रमुख मंडियों से फल, सब्ज़ियां, दालें और अनाज की आपूर्ति पूरी तरह से ठप हो गई है। इसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है, जिससे ताज़ी उपज की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।

व्यापारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर सकारात्मक कदम नहीं उठाती है और उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो यह सांकेतिक हड़ताल एक अनिश्चितकालीन बंद (indefinite strike) में बदल सकती है, जिससे राज्य की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पर और भी गंभीर संकट पैदा हो जाएगा।

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