धारवाड़, 17 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): कुसुम (Safflower) की खेती और इसके मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजे धारवाड़ तालुका के सेवाग्राम जिरीगावाड़ा स्थित मैलारालिंगेश्वर मंदिर में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
इस कार्यक्रम में 100 चयनित किसानों को कुसुम के बीज निःशुल्क वितरित किए जाएंगे। यह पहल देसीरी नेचुरल प्राइवेट लिमिटेड (बेंगलुरु) और भाजपा रायथा मोर्चा के संयुक्त प्रयास से की जा रही है।
कार्यक्रम का उद्देश्य
इस आयोजन का प्रमुख उद्देश्य किसानों में कुसुम की फसल के मूल्य संवर्धन, तेल उत्पादन और प्रसंस्करण क्षमता के प्रति जागरूकता फैलाना है। कुसुम एक उच्च तेलीय फसल है, जिसकी खेती भारत में तेजी से घट रही थी। अब इसे फिर से लाभकारी विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
कार्यक्रम में उप्पिनाबेटगेरी मूरुसाविरा विरक्तमठ के कुमारा विरुपाक्ष स्वामीजी मुख्य अतिथि होंगे, जो चयनित किसानों को कुसुम बीजों का वितरण करेंगे।
राज्य कुसुम पुनरुद्धार अभियान की प्रमुख और भाजपा रायथा मोर्चा, बेंगलुरु दक्षिण जिला सचिव विद्या वी.एम. इस अवसर पर मुख्य भाषण देंगी। उन्होंने कहा, “भारत हर साल लगभग 14 मिलियन टन खाद्य तेल का आयात करता है। हमें इस निर्भरता से मुक्त होकर तेलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करनी होगी।”
सरकारी योजनाओं की जानकारी
कार्यक्रम में किसानों को केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं के बारे में जानकारी दी जाएगी —
- प्रधानमंत्री लघु खाद्य प्रसंस्करण उद्यम (PMFME) योजना के तहत स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों के लिए सहायता।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत तिलहन खेती और छोटे उद्यमों के लिए ऋण सुविधा।
विद्या वी.एम. ने जिले के किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) से इस अभियान में शामिल होने की अपील की, ताकि अधिक किसान कुसुम की खेती से जुड़ सकें और स्थानीय तेल उत्पादन को बढ़ावा मिले।
कुसुम की खेती क्यों महत्वपूर्ण है
- कुसुम एक सूखा-सहिष्णु तिलहन फसल है, जो कम पानी में भी अच्छी उपज देती है।
- इसके बीजों से उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य तेल और पशु आहार तैयार किया जाता है।
- कर्नाटक, महाराष्ट्र, और मध्य भारत के शुष्क इलाकों में यह फसल किसानों के लिए वैकल्पिक आय स्रोत बन सकती है।
कुसुम पुनरुद्धार अभियान का यह आयोजन भारत को तेल आयात पर निर्भरता कम करने और स्थानीय तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में एक ठोस कदम है। किसानों में इस फसल के प्रति बढ़ती रुचि भविष्य में खाद्य तेल आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
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