नई दिल्ली, 11 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): आगामी केंद्रीय बजट 2026-27 से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को किसान यूनियनों, कृषि विशेषज्ञों और एग्री-इंडस्ट्री प्रतिनिधियों के साथ ‘Pre-Budget Consultation Meeting’ की। बैठक में कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर और आय-आधारित बनाने के लिए कई नीतिगत सुझाव रखे गए। फोकस रहा – किसानों की आमदनी में वृद्धि, फसल बीमा की पारदर्शिता और ग्रामीण स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट्स के विस्तार पर।
प्रोसेसिंग यूनिट्स को बढ़ावा देने की सिफारिश
बैठक में शामिल किसान संगठनों ने कहा कि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य तभी मिलेगा, जब ग्राम और ब्लॉक स्तर पर एग्री प्रोसेसिंग यूनिट्स (Agri-Processing Units) स्थापित की जाएं।
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को गांव-स्तर पर प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं, कम ब्याज दर वाले लोन, और FPOs (किसान उत्पादक संगठन) को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि किसान खुद मूल्यवर्धन कर सकें।
किसानों का तर्क है कि इससे फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में रोजगार, स्थानीय आय, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तीनों को लाभ मिलेगा।
रिसर्च और टिकाऊ खेती पर ज़ोर
कृषि विशेषज्ञों ने सरकार को सलाह दी कि भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए खेती में रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) पर अधिक निवेश जरूरी है। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि एक “Dedicated Agriculture Research Fund” बनाया जाए, जिससे नई फसल किस्मों, जलवायु-स्थिर तकनीक और टिकाऊ खेती के मॉडलों पर शोध किया जा सके।
कृषि नीति विश्लेषकों का कहना है कि “भारत की कृषि को अब प्रोडक्टिविटी से आगे बढ़कर सस्टेनेबिलिटी और वैल्यू-एडिशन पर ध्यान देना होगा।”
फसल बीमा योजना में बदलाव की मांग
कई किसान यूनियनों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) को लेकर संरचनात्मक बदलाव की मांग उठाई। किसानों का कहना था कि बीमा क्लेम में देरी और जटिल प्रक्रिया बड़ी समस्या है, कई बार मुआवजा किसानों तक समय पर नहीं पहुँचता।
उन्होंने सिफारिश की कि किसानों को सीधे मुआवजा देने की प्रणाली लागू की जाए, एक अलग फसल बीमा फंड बनाया जाए, जिससे भुगतान स्वतः और समय पर हो सके।
MSP वाली फसलों पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाने का सुझाव
बैठक में विशेषज्ञों और किसान संगठनों ने सरकार से कहा कि जब किसी फसल पर MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय किया जाता है, तो उसी फसल के विदेशी आयात पर सीमा शुल्क (Import Duty) लगाया जाए।
उनका कहना है कि इससे घरेलू किसानों को उचित मूल्य संरक्षण मिलेगा, और सस्ते विदेशी उत्पादों से स्थानीय बाजार प्रभावित नहीं होंगे। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, “यह नीति भारत को एग्रो-कॉम्पिटिटिव और आत्मनिर्भर कृषि अर्थव्यवस्था की दिशा में ले जा सकती है।”
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, बैठक का मकसद ग्रासरूट स्तर से नीति सुझाव जुटाना और अगले बजट में कृषि क्षेत्र के लिए प्रायोगिक सुधारों को शामिल करना है।
सरकार अब इन सुझावों को कृषि, वित्त और ग्रामीण विकास मंत्रालयों के साथ साझा करेगी। सिफारिशों पर मंत्रालय-स्तरीय मूल्यांकन (Inter-Ministerial Review) के बाद बजट के ड्राफ्ट में कृषि सेक्टर से जुड़े सुधारों को स्थान मिल सकता है।
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि फसल बीमा और प्रोसेसिंग दोनों ही ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें संरचनात्मक निवेश की जरूरत है। यदि सरकार इन दोनों पर बजट में ठोस प्रावधान करती है, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भरोसे और स्थिरता आएगी।
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