मुंबई, 3 दिसंबर, 2025 ( कृषि भूमि डेस्क): भारत की कृषि अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी लचीलापन (resilience) दिखाते हुए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। चालू खरीद सीजन में, केंद्र सरकार द्वारा किसानों से सीधे धान की खरीद में राष्ट्रीय स्तर पर 13 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह आँकड़ा न केवल देश की बढ़ती खाद्य सुरक्षा को बल देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ अब भौगोलिक रूप से अधिक व्यापक (geographically widespread) हो रहा है। हालाँकि, इस राष्ट्रीय सफलता के बीच एक महत्वपूर्ण विरोधाभास देखने को मिला है—देश के दो प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों पंजाब और उत्तर प्रदेश (UP) में सरकारी खरीद में अपेक्षित गिरावट आई है।
इस विरोधाभासी स्थिति का गहन विश्लेषण आवश्यक है। जहाँ पंजाब और उत्तर प्रदेश पारंपरिक रूप से केंद्र के अनाज भंडार (central pool) में सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे हैं, वहीं इस सीजन में उनकी खरीद में आई कमी ने कृषि नीति निर्माताओं का ध्यान खींचा है। विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में यह गिरावट जल संकट और फसल विविधीकरण (diversification) की ओर बढ़ते किसानों के झुकाव को दर्शाती है, जबकि उत्तर प्रदेश में, किसानों ने बाज़ार की बदलती गतिशीलता (market dynamics) और संभवतः निजी व्यापारियों द्वारा दिए गए अच्छे मूल्य के कारण अपनी उपज सरकारी खरीद केंद्रों के बाहर बेची है। इसके अलावा, कई बार किसानों को खरीद प्रक्रिया की जटिलताओं से बचने के लिए भी बाज़ार का रुख करना पड़ता है, भले ही कीमतें MSP के करीब हों।
पंजाब और उत्तर प्रदेश की इस गिरावट की भरपाई जिन राज्यों ने मजबूती से की है, उनमें तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य प्रमुख हैं। इन राज्यों ने विकेन्द्रीकृत खरीद प्रणाली (Decentralised Procurement System) को अपनाया है, जिसने किसानों के लिए अपनी उपज बेचना आसान बना दिया है। इन राज्यों में किसानों को MSP का लाभ बड़े पैमाने पर मिला है, जिससे वे अधिक धान उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हुए हैं और राष्ट्रीय खरीद लक्ष्य को पूरा करने में निर्णायक भूमिका निभाई है। यह भौगोलिक बदलाव इस बात का संकेत है कि अब देश के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से भी राष्ट्रीय अनाज पूल में अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रहे हैं।
दक्षिण भारतीय राज्यों ने संभाला मोर्चा
तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की—
- तमिलनाडु: 188% बढ़कर 9.86 लाख टन
- तेलंगाना: 52.2% बढ़कर 17.05 लाख टन
- आंध्र प्रदेश: 111% बढ़कर 5.11 लाख टन
| राज्य | 2025 की खरीद | 2024 की खरीद | वृद्धि/गिरावट (%) |
|---|---|---|---|
| पंजाब | 104.80 | 109.17 | -4% |
| हरियाणा | 35.96 | 27.58 | +30.4% |
| उत्तर प्रदेश | 6.05 | 7.45 | -18.8% |
| छत्तीसगढ़ | 6.63 | 6.77 | -2.1% |
| तमिलनाडु | 9.86 | 3.42 | +188% |
| तेलंगाना | 17.05 | 11.20 | +52.2% |
| आंध्र प्रदेश | 5.11 | 2.42 | +111% |
| पश्चिम बंगाल | 2.93 | 0 | — |
| उत्तराखंड | 4.78 | 3.10 | +54.2% |
| कुल (अक्टूबर–नवंबर) | 194.14 | 172.24 | +12.7% |
यह ट्रेंड भारतीय कृषि नीति के लिए एक अत्यंत सकारात्मक संकेत है। यह स्पष्ट करता है कि MSP और सरकारी खरीद का लाभ अब केवल कुछ ही “अग्रणी राज्यों” तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में छोटे और सीमांत किसानों तक पहुँच रहा है। खरीद में यह भौगोलिक विविधीकरण (geographical diversification) न केवल केंद्र सरकार के भंडार को सुरक्षित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी एक क्षेत्र में मौसम या बाज़ार की विफलता का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर बड़ा नकारात्मक असर न पड़े। यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोगात्मक प्रयासों से किसानों की आय में वृद्धि और देश की खाद्य आत्मनिर्भरता को और मज़बूत किया जा सकता है, जिससे भारत वैश्विक कृषि मानचित्र पर अपनी स्थिति और भी सुदृढ़ कर सकता है।
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