मुंबई, 02 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो):
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश और बाढ़ ने कृषि क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। बीड, लातूर, उस्मानाबाद और औरंगाबाद जिलों में हजारों एकड़ खेत पानी में डूब गए हैं, जिससे किसानों की खड़ी फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं। इसके साथ ही कई ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन बह गए हैं और उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत भी बाढ़ के पानी के साथ बह गई है।
किसानों की आजीविका पर संकट
स्थानीय किसानों के अनुसार, उन्हें न केवल अपनी पूरी साल की मेहनत खोनी पड़ी है, बल्कि पशुधन के नुकसान और मिट्टी के कटाव ने भविष्य की बुवाई पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
“इस साल सोयाबीन की फसल अच्छी थी, लेकिन बाढ़ ने सब तबाह कर दिया। अब तो खेत भी दोबारा बुआई के लायक नहीं बचे,” – गोविंदराव शिंदे, किसान, लातूर।
कर्ज़ में डूबते किसान
पहले से ही महंगे बीज, खाद और कीटनाशकों के खर्च में डूबे किसान अब इस प्राकृतिक आपदा के कारण और अधिक कर्ज़ में फंस गए हैं। कई किसानों ने बैंक और साहूकारों से लोन लेकर खेती की थी, लेकिन फसल के नष्ट हो जाने से वह रकम चुकाना अब असंभव हो गया है।
सरकारी राहत अधर में
राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नुकसान का सर्वे शुरू कर दिया है, लेकिन किसानों को तत्काल राहत नहीं मिल पाई है। मुआवजा वितरण में देरी और प्रक्रिया की जटिलता से किसान और अधिक परेशान हैं। कुछ क्षेत्रों में तो अब तक अधिकारी पहुंचे भी नहीं हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि मिट्टी की गुणवत्ता को दोबारा बहाल करने के लिए सरकार को दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। मृदा परीक्षण, जैविक खाद और भूमि सुधार कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता है।
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