बेंगलुरु, 10 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): कर्नाटक में गन्ने के दाम को लेकर पिछले आठ दिनों से चल रहा किसान आंदोलन आखिरकार सफल रहा। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि किसानों को अब प्रति टन 3,300 रुपये का भुगतान किया जाएगा।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को चीनी मिल मालिकों और किसान प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक के बाद यह फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि यह दर 11.25 प्रतिशत चीनी रिकवरी पर तय की गई है।
सरकार और मिल मालिकों के बीच समझौता
बैठक में मिल मालिकों ने पहले 11.25% उपज वाले गन्ने के लिए ₹3,200 प्रति टन भुगतान करने पर सहमति जताई थी। इसके बाद राज्य सरकार और मिल मालिकों दोनों ने 50-50 रुपये अतिरिक्त जोड़कर किसानों को ₹3,300 प्रति टन का भाव देने का निर्णय लिया। इसमें से ₹3,250 रुपये का भुगतान चीनी मिलें करेंगी और ₹50 रुपये का योगदान राज्य सरकार देगी।
सरकार के इस फैसले के बाद किसानों ने आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी है। किसान नेताओं ने इसे “किसानों की जीत” बताया है।
किसान आंदोलन से सरकार पर बढ़ा दबाव
किसानों का यह आंदोलन पिछले एक सप्ताह से लगातार तेज़ी पकड़ रहा था। गन्ना उत्पादक किसान ₹3,500 प्रति टन की मांग पर अड़े हुए थे।
आंदोलनकारी किसानों ने शुक्रवार को राज्य सरकार को सुबह 8 बजे तक निर्णय लेने का अल्टीमेटम दिया था।
किसान नेता और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने बताया कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और चीनी मिल मालिकों के बीच बैठक में जब दाम बढ़ाने से इनकार किया गया, तो किसानों ने पुणे-बेंगलुरु हाईवे जाम कर दिया। राजू शेट्टी ने कहा, ‘हमने सरकार को समय दिया था। किसानों का दबाव रंग लाया और अब ₹3,300 का भाव तय हुआ। यह किसान आंदोलन की जीत है।’
कर्नाटक देश का तीसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है, जहां प्रमुख गन्ना बेल्ट महाराष्ट्र की सीमा से लगते क्षेत्रों – बेलगावी, विजयपुरा, और बागलकोट – में फैली हुई है। इन इलाकों में महाराष्ट्र के गन्ना आंदोलनों का सीधा प्रभाव पड़ता है। राजू शेट्टी, जो महाराष्ट्र के हातकणंगले से दो बार सांसद रह चुके हैं, ने कर्नाटक के किसानों को भी इस आंदोलन में संगठित किया। राज्य के किसान लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें महाराष्ट्र के बराबर गन्ना मूल्य मिले। कर्नाटक में मिलों द्वारा भुगतान में देरी और मूल्य निर्धारण को लेकर असंतोष था, जिसके चलते आंदोलन शुरू हुआ।
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि राज्य सरकार किसानों के साथ है और यह फैसला उनकी मेहनत का सम्मान है। उन्होंने कहा, ‘गन्ना किसानों ने राज्य की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दिया है। हम सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले।’
राज्य के चीनी मिल संघ (Karnataka Sugar Mills Association) ने भी इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि सरकार के सहयोग से मिलें किसानों को समय पर भुगतान करेंगी।
पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा तय फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) ₹3,150 प्रति टन था (11.5% रिकवरी पर)। कई राज्यों में इस पर बोनस जोड़कर किसानों को ₹3,200–₹3,400 तक भुगतान किया जा रहा था। कर्नाटक के किसान भी इसी के अनुरूप मूल्य की मांग कर रहे थे।
राज्य के 70 से अधिक गन्ना किसान संगठनों ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर प्रदर्शन किया था। आंदोलन के दौरान बेलगावी, बागलकोट और विजयपुरा जिलों में मिलों के सामने धरने और हाईवे जाम जैसी घटनाएं हुईं।
यह समझौता न केवल कर्नाटक बल्कि दक्षिण भारत के अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकता है। किसानों के दबाव और शांतिपूर्ण आंदोलन ने सरकार को निर्णय लेने के लिए मजबूर किया। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह मॉडल ‘सरकार–उद्योग–किसान साझेदारी’ के रूप में भविष्य में भी लागू किया जा सकता है। इस फैसले से राज्य के लगभग 12 लाख गन्ना किसानों को सीधा लाभ मिलेगा, जबकि चीनी मिलों की लागत में मामूली वृद्धि होगी।
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