मुंबई, 28 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): भारत, जो दुनिया के सबसे बड़े प्याज उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है, वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। बांग्लादेश और सऊदी अरब, जो भारतीय प्याज के सबसे बड़े खरीदारों में से हैं, उन्होंने खरीद में काफी कमी कर दी है। इस कारण भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान हो रहा है और किसानों को भी अपनी उपज के लिए उचित मूल्य मिलने में समस्या आ रही है।
बांग्लादेश और सऊदी अरब ने क्यों घटाई खरीद?
प्याज के निर्यात में गिरावट के पीछे कई कारक ज़िम्मेदार हैं। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए निर्यात शुल्क (Export Duty) लगाया था और कई बार निर्यात पर प्रतिबंध भी लगाया गया। इस तरह के अचानक नीतिगत बदलाव से अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों का भरोसा डगमगाता है। खरीदार, आपूर्ति की अनिश्चितता के डर से, भारत के बजाय तुर्की (Turkey), पाकिस्तान और मिस्र (Egypt) जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं।
भारत में प्याज के थोक मूल्य में अस्थिरता बनी हुई है। जब भारत में कीमतें बढ़ती हैं, तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय प्याज गैर-प्रतिस्पर्धी (Non-Competitive) हो जाता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में प्याज का भाव कुछ समय पहले ₹35 से ₹40 प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया था, जबकि वैश्विक बाज़ार में यह कीमत ज़्यादा थी। कई प्रमुख आयातक देश अब अपने घरेलू प्याज उत्पादन को बढ़ाने पर भी ध्यान दे रहे हैं, जिससे आयात की आवश्यकता कम हो रही है।
निर्यातकों पर दोहरी मार
आयातकों द्वारा खरीद घटाने से भारतीय निर्यातकों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है:
जमा स्टॉक की समस्या: निर्यात की मांग घटने से बंदरगाहों पर निर्यात के लिए तैयार प्याज का बड़ा स्टॉक जमा हो गया है। इस स्टॉक के खराब होने का खतरा है, जिससे निर्यातकों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ेगा।
अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों का टूटना: कई निर्यातकों के अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध रद्द हो रहे हैं, जिससे उनका बाज़ार में नाम खराब हो रहा है और भविष्य के ऑर्डर मिलने में दिक्कत आ रही है।
किसानों को नुकसान: निर्यात की मांग में कमी आने पर घरेलू बाज़ार में प्याज की आपूर्ति बढ़ जाती है, जिससे किसानों को उनकी उपज का कम दाम मिलता है।
सरकार को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में विश्वास बहाल करने के लिए एक स्थिर और दीर्घकालिक निर्यात नीति बनाने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय प्याज की वैश्विक बाज़ार में हिस्सेदारी बनी रहे और किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके।
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