नई दिल्ली, 08 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत के तेल-तिलहन उद्योग में आने वाले वर्ष 2025/26 के लिए चिंताजनक संकेत उभर रहे हैं। नवीनतम अनुमान बताते हैं कि देश का ऑयल मील उत्पादन लगभग 2.8% घटकर पिछले वर्ष की तुलना में कम रहेगा। इस कमी की सबसे बड़ी वजह सोयाबीन क्रशिंग में गिरावट है, जो देश के कुल ऑयल मील उत्पादन का बड़ा हिस्सा संचालित करती है।
सोयाबीन की उपलब्धता में कमी, किसानों द्वारा स्टॉक होल्डिंग, और कुछ राज्यों में कमजोर पैदावार के कारण मिलों की क्रशिंग क्षमता पूरी तरह उपयोग नहीं हो पा रही है। इससे घरेलू बाजार में सोयाबीन मील की सप्लाई सीमित हो रही है और पशु आहार उद्योग के लिए लागत बढ़ने की आशंका बन गई है।
उत्पादन अनुमान में गिरावट की वजह
2025/26 में ऑयल मील उत्पादन में गिरावट के पीछे कई कारक हैं। सोयाबीन के अलावा सरसों और मूंगफली की क्रशिंग भी स्थिर या हल्की कम रहने का अनुमान है, क्योंकि किसानों ने बेहतर दाम की उम्मीद में तिलहन की बिक्री धीमी रखी है।
देशभर में सोयाबीन की फसल को प्रभावित करने वाली अनियमित वर्षा तथा कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में उत्पादन में गिरावट ने मिलों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को सीमित कर दिया है। परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में क्रशिंग यूनिट्स अपनी क्षमता से बहुत कम उत्पादन कर रही हैं।
ऑयल मील सप्लाई और बाजार पर संभावित प्रभाव
ऑयल मील उत्पादन में यह गिरावट विशेष रूप से पोल्ट्री और मवेशी चारा उद्योग को प्रभावित कर सकती है। चूंकि सोयाबीन मील उच्च प्रोटीन स्रोत है, सप्लाई में कमी से वैकल्पिक फीड अधिक महंगे पड़ सकते हैं।
सप्लाई कम होने के साथ घरेलू बाजार में सोया मील कीमतों में मजबूती की संभावना है। इसके साथ ही निर्यात के लिए उपलब्ध स्टॉक कम होगा और फीड कंपनियों की लागत बढ़ सकती है, जिसका प्रभाव डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों की कीमतों पर पड़ सकता है।
निर्यात पर भी पड़ेगा असर
भारत सोयाबीन मील का एक महत्वपूर्ण निर्यातक है, लेकिन सप्लाई में गिरावट से 2025/26 में निर्यात में कमी का अनुमान है। कम उत्पादन का मतलब है कि मिलें घरेलू मांग को प्राथमिकता देंगी, जिससे एशिया और पश्चिम एशिया के पारंपरिक खरीदारों को नियमित आपूर्ति में बाधाएं आ सकती हैं।
यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अर्जेंटीना और ब्राज़ील जैसे देशों का उत्पादन बढ़ा रहता है, तो भारत की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति और कमजोर हो सकती है।
इंडस्ट्री का नज़रिया
विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिति में सुधार तभी संभव होगा जब तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी MSP और प्रोत्साहन योजनाएँ और मजबूत हों, सोयाबीन किसानों के लिए मार्केट लिंक और स्टोरेज ढांचे में सुधार हो और मिलों को स्थिर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और फ्यूचर ट्रेडिंग को और प्रभावी बनाया जाए ।
2025/26 का पूरा वर्ष ऑयल मील उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। उत्पादन में 2.8% की गिरावट और सोयाबीन क्रशिंग में बाधाओं के चलते देश में उपलब्धता सीमित रहेगी, जिसका असर पशु आहार उद्योग के साथ-साथ उपभोक्ता स्तर तक देखने को मिल सकता है।
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