भोपाल, 28 जुलाई (कृषि भूमि डेस्क): भारत में इस वर्ष मानसून की मजबूत शुरुआत ने ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई को गति दे दी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई महीने में औसत से अधिक हुई बारिश ने खेतों में नमी का स्तर बढ़ाया है, जिससे धान, सोयाबीन, मक्का, कपास और दलहनों की बुवाई में तेजी देखी जा रही है।
भारतीय कृषि व्यवस्था में मानसून का केंद्रीय स्थान है। यह न केवल खेतों को पानी देता है, बल्कि जलाशयों और भूजल स्तर को भी भरता है। देश के करीब 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि की बड़ी भूमिका है, और लगभग 50% कृषि भूमि अभी भी असिंचित है। ऐसे में जून-सितंबर की मानसूनी बारिश खेती की रीढ़ मानी जाती है।
बुवाई के ताज़ा आँकड़े (18 जुलाई 2025 तक)
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कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 1 जून से अब तक देश में सामान्य से 6% अधिक वर्षा दर्ज की गई है। इससे बुवाई की स्थिति बेहतर हुई है।
धान की बुवाई में सबसे तेज़ उछाल
विशेष रूप से धान की बुवाई में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी देखी गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार द्वारा समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि और सरकारी खरीद की गारंटी ने किसानों को अधिक क्षेत्र में धान की खेती करने के लिए प्रेरित किया है। मुंबई की एक व्यापारिक फर्म के डीलर ने बताया, ‘धान की सरकारी खरीद के चलते किसान इसे प्राथमिकता दे रहे हैं, जबकि सोयाबीन जैसी फसलों में यह भरोसा नहीं मिलता।’
मानसून की स्थिति अनुकूल
अब तक मानसून देश के अधिकांश हिस्सों में अनुकूल रहा है, पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर, जहां अभी भी वर्षा सामान्य से कम है। यदि मानसून की यही रफ्तार अगले महीने तक बनी रहती है, तो विशेषज्ञ बंपर फसल की संभावना जता रहे हैं।
नीतिगत असर और कृषि योजना
एमएसपी नीति धान जैसे फसलों में स्थिरता ला रही है। कृषि मंत्रालय राज्यों से लगातार अपडेट लेकर बुवाई के आंकड़ों को संशोधित करता रह रहा है। बदलते बुवाई पैटर्न को देखते हुए खाद्य तेल आयात और निर्यात नीति पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक और सोया व पाम तेल का बड़ा आयातक है।
भारत में मजबूत मानसून और नीतिगत समर्थन से 2025 की खरीफ फसल सीजन की शुरुआत सकारात्मक रही है। यदि मौसम अनुकूल बना रहा, तो धान, मक्का और दलहनों में उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है, जिससे किसानों की आमदनी और देश की खाद्य सुरक्षा—दोनों को मज़बूती मिलेगी।
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