शिमला, 21 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): हिमाचल प्रदेश, जिसे “देव भूमि” के साथ-साथ “फलों की टोकरी” भी कहा जाता है, इन दिनों कड़ाके की ठंड और घने कोहरे की चपेट में है। बागवानी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तापमान में अचानक आई गिरावट और लगातार नमी फलों के पौधों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। बागवानों के लिए यह समय विशेष रूप से सतर्क रहने और विशेषज्ञ सलाह का पालन करने का है, ताकि उनकी बहुमूल्य फसलें, विशेष रूप से सेब, नाशपाती और अन्य फलदार पौधे, सुरक्षित रहें।
ठंड और कोहरे का फसलों पर प्रभाव
ठंड और कोहरे से होने वाले नुकसान को समझना आवश्यक है ताकि किसान सही समय पर बचाव के उपाय कर सकें:
पादप ऊतक क्षति (Tissue Damage): अत्यधिक कम तापमान, विशेषकर पाला (Frost), पौधों की कोशिकाओं में मौजूद पानी को जमा देता है। इससे कोशिका भित्तियाँ (Cell Walls) फट जाती हैं और पौधा सूखने लगता है।
प्रकाश संश्लेषण में रुकावट: घना कोहरा सूरज की रोशनी को जमीन तक पहुँचने से रोकता है। इससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया धीमी हो जाती है या रुक जाती है, जिससे उनका विकास बाधित होता है।
रोगों का खतरा: लगातार नमी और कम तापमान फफूंदी जनित रोगों (Fungal Diseases) जैसे स्केब और विभिन्न तरह के धब्बों के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं।
पौधों का पीला पड़ना: ठंड के कारण पोषक तत्वों का अवशोषण (Absorption) कम हो जाता है, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ सकती हैं, जिसे क्लोरोसिस कहते हैं।
विशेषज्ञों की आवश्यक सलाह:
बागवानी विशेषज्ञों और डॉ. वाई.एस. परमार औद्योगिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय (Dr. YS Parmar University of Horticulture and Forestry) के वैज्ञानिकों ने बागवानों को निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाने की सलाह दी है:
1. सिंचाई और नमी प्रबंधन
हल्की सिंचाई: विशेषज्ञों का कहना है कि पाला पड़ने की आशंका होने पर, बागों में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। नमी से भरे खेत में हवा की तुलना में तापमान कुछ डिग्री अधिक रहता है, जिससे पाले का सीधा असर पौधों पर कम होता है।
जल निकासी: हालाँकि नमी आवश्यक है, लेकिन जलभराव (Waterlogging) से बचना चाहिए, क्योंकि यह जड़ सड़न (Root Rot) का कारण बन सकता है। सुनिश्चित करें कि बागों में उचित जल निकासी की व्यवस्था हो।
2. मल्चिंग और कवरिंग
मल्चिंग (Mulching): पौधों के तने के आस-पास घास, पुआल (Straw) या सूखी पत्तियों की एक मोटी परत बिछाने से मिट्टी का तापमान स्थिर बना रहता है। यह जड़ क्षेत्र को ठंड से बचाता है और नमी को बनाए रखता है।
कवरिंग: छोटे पौधों या नर्सरी में लगे पौधों को सरकंडा, पॉलीथीन शीट या जूट के बोरे से ढकना सबसे प्रभावी उपाय है।
3. पोषक तत्व और सुरक्षात्मक स्प्रे
सल्फर का छिड़काव: कोहरा और नमी फंगस को बढ़ाती है। बागवानों को पानी में घुलनशील सल्फर (Water Soluble Sulfur) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे फफूंदीनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। यह न केवल रोगों से बचाता है, बल्कि पौधों को ठंड सहने की क्षमता भी प्रदान करता है।
पोषक तत्वों की पूर्ति: ठंड के कारण यदि पत्तियाँ पीली पड़ रही हैं (नाइट्रोजन या आयरन की कमी), तो विशेषज्ञ सलाह के अनुसार जिंक सल्फेट या आयरन सल्फेट का हल्का छिड़काव किया जा सकता है।
4. तने की सुरक्षा
तने पर पेंट: फलदार पौधों, विशेषकर सेब के पेड़ों के तने को चूने और कॉपर सल्फेट के मिश्रण (Lime and Copper Sulphate mixture) से पेंट करना चाहिए। यह मिश्रण न केवल तने को ठंड और पाले से बचाता है, बल्कि कुछ कीटों और रोगों से भी सुरक्षा देता है।
घास हटाना: बाग के आस-पास अनावश्यक रूप से उगी घास को हटा देना चाहिए, खासकर तने के पास से, ताकि ठंड सीधे तने को प्रभावित न करे।
5. धूम्रपान (Smudging) तकनीक
अंतिम उपाय: अत्यधिक पाला पड़ने की स्थिति में, बागवानों को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले बाग के किनारों पर गीली घास या कृषि अपशिष्ट को जलाकर धुआँ (Smudging) पैदा करना चाहिए। यह धुआँ एक परत बनाता है जो जमीन की गर्मी को वायुमंडल में जाने से रोकती है और पाले के प्रभाव को कम करती है।
सेब की फसल पर विशेष ध्यान
हिमाचल में सेब की फसल सबसे महत्वपूर्ण है। बागवानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने सेब के बगीचों में समय पर प्रूनिंग (Pruning) करें और छंटाई के बाद तने पर उचित पेस्ट लगाएं, खासकर उन बागों में जहां अभी भी कटाई का काम चल रहा है या शुरू होना बाकी है।
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