तिलहन की बुवाई 4% बढ़ी, सरसों 73.8 लाख हेक्टेयर पर; खाने के तेल के इंपोर्ट में 7% गिरावट

नई दिल्ली, 27 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देश में तिलहन की बुवाई 21 नवंबर 2025 तक पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग 4% बढ़कर 76.64 लाख हेक्टेयर को पार कर गई है। यह आंकड़े केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 24 नवंबर को जारी रबी फसलों की बुवाई प्रगति रिपोर्ट में सामने आए।

पिछले वर्ष 2024-25 रबी सीजन में इसी अवधि में तिलहन की बुआई 72.69 लाख हेक्टेयर थी। लगातार बढ़ता रकबा इस बात का संकेत है कि किसान तिलहन की ओर अधिक झुकाव दिखा रहे हैं।

सरसों की बुवाई में तेजी, अन्य तिलहनों की स्थिति भी बेहतर
रिपोर्ट के अनुसार, 21 नवंबर तक सरसों की बुवाई 73.80 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो तिलहन कुल क्षेत्रफल का सबसे बड़ा हिस्सा है। मूंगफली की बुवाई 1.12 लाख हेक्टेयर,
सनफ्लावर 0.16 लाख हेक्टेयर, जबकि अन्य तिलहन 1.56 लाख हेक्टेयर में बोए गए हैं।

कुल मिलाकर रबी तिलहन क्षेत्र में लगातार वृद्धि किसान आय और घरेलू तेल उत्पादन में सुधार की दिशा में सकारात्मक संकेत देती है।

खाने के तेल के इंपोर्ट में 7% की गिरावट
इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोसेसर्स एसोसिएशन (IVPA) के प्रेसिडेंट सुधाकर देसाई ने बताया कि पिछले दो वर्षों में खाने के तेल का इंपोर्ट कम हुआ है। इंपोर्ट में 7% की गिरावट आई है। देसाई ने कहा कि इंपोर्ट का स्तर मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्भर करता है। सोया ऑयल का इंपोर्ट 5.5 मिलियन टन रहा। सनफ्लावर ऑयल का इंपोर्ट 30 लाख टन रहा।

उन्होंने यह भी बताया कि पाम ऑयल के दाम अधिक होने से उसका इंपोर्ट घटा है और थाइलैंड अब एक बड़े एक्सपोर्टर के रूप में उभरा है। इसी तरह कई नए देश भी सोया ऑयल भारत को निर्यात कर रहे हैं।

खपत में कमी, ई-कॉमर्स से पैकेज्ड ऑयल की मांग में बढ़त
सुधाकर देसाई ने यह भी कहा कि समय के साथ देश में खाने के तेल की खपत में गिरावट आई है। हालांकि त्योहारों के दौरान एफएमसीजी उत्पादों की मांग 25% तक बढ़ी थी।

ग्लोबल फैक्टर्स का असर घरेलू खाने के तेल बाजार पर लगातार देखा जा रहा है। जीएसटी कटौती का खास प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन ई-कॉमर्स के चलते पैकेज्ड ऑयल की मांग में वृद्धि दर्ज की गई है।

सरसों और पाम ऑयल की मांग बढ़ी, बायोडीजल डायवर्जन का असर
देश में सरसों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जबकि पाम ऑयल का घरेलू उत्पादन भी मजबूत हो रहा है। सरसों के कोल्ड-प्रेस्ड ऑयल की मांग विशेष रूप से बढ़ी है। दूसरी ओर, ग्लोबल खाने का लगभग 25-30% तेल बायोडीजल में डायवर्ट हो रहा है। इससे वैश्विक सप्लाई पर दबाव और कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना है। देसाई का मानना है कि जनवरी–मार्च की तिमाही खाने के तेल उद्योग के लिए बेहतर रह सकती है, क्योंकि वैश्विक और घरेलू दोनों स्तर पर मांग में सुधार दिख रहा है।

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