मुंबई, 09 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): महाराष्ट्र के बीड़ जिले के किसान दत्तात्रेय घुले आज उन किसानों की नई पीढ़ी का उदाहरण हैं, जो पारंपरिक खेती से हटकर नकदी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। जहां खेती अब पढ़े-लिखे युवाओं और प्रयोगधर्मी किसानों के लिए बड़े अवसर लेकर आ रही है, वहीं मौसम और सिंचाई जैसी चुनौतियाँ अभी भी भारतीय कृषि की सबसे बड़ी बाधा हैं। ऐसे समय में दत्तात्रेय घुले ने जोखिम उठाकर एक नई राह चुनी—और अब उसी राह से सालाना 10–12 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
सूखे इलाके में मिली प्रेरणादायक सफलता
बीड जिले का आष्टी तालुका सूखाग्रस्त इलाका माना जाता है। यहाँ कभी बारिश अत्यधिक होती है, तो कभी लंबे समय तक सूखा पड़ जाता है। इन अस्थिर मौसम स्थितियों के कारण पारंपरिक फसलें अक्सर चौपट हो जाती थीं। लगातार नुकसान से परेशान होकर दत्तात्रेय घुले ने पारंपरिक खेती छोड़ नई फसलें उगाने का फैसला लिया। उन्होंने अपने डेढ़ एकड़ खेत में 80 खजूर के पौधे लगाए—और इसी फैसले ने उनकी जिंदगी बदल दी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आज इन खजूर के पेड़ों से उन्हें 10 से 12 लाख रुपये सालाना तक की आमदनी हो रही है। यह न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने वाला कदम साबित हुआ, बल्कि बीड़ और आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गया है।
बारली किस्म की खजूर: कम पानी, ज्यादा उत्पादन
दत्तात्रेय घुले ने बताया कि उन्होंने खजूर की बारली किस्म को चुना, जो सूखे क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है। दो पेड़ों के बीच 25×25 फीट की दूरी रखकर इनकी रोपाई की गई। इस फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे बेहद कम पानी की आवश्यकता होती है—ऐसे इलाके के लिए यह वरदान ही है।
एक एकड़ में लगभग 65 पेड़ आसानी से लग जाते हैं। प्रत्येक पेड़ से करीब 200 किलो तक फल मिलता है, और प्रति पेड़ लगभग 20,000 रुपये की कमाई हो जाती है। बारली किस्म के खजूर अपने आकर्षक आकार और स्वाद के कारण बाजार में अच्छी कीमत पर बिकते हैं।
किसानों को चाहिए सब्सिडी-महंगा पौधा बड़ी चुनौती
हालांकि खजूर की बारली किस्म के पौधे की कीमत 4500 रुपये प्रति पौधा तक होती है, जो छोटे और मध्यम किसानों के लिए भारी खर्च है। दत्तात्रेय घुले का मानना है कि महाराष्ट्र सरकार को खजूर पौधों पर सब्सिडी देनी चाहिए, ताकि और किसान भी इस खेती से जुड़ सकें। उन्होंने बताया कि गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में किसानों को ऐसी फसलों पर सब्सिडी मिलती है, जिससे वे ड्रैगन फ्रूट और खजूर जैसी हाई-वैल्यू फसलों की खेती आसानी से कर पाते हैं।
नए दौर की खेती का मॉडल
दत्तात्रेय घुले की सफलता दिखाती है कि अगर सही फसल का चयन, वैज्ञानिक तरीका और जोखिम उठाने का साहस हो, तो सूखे जैसे प्रतिकूल क्षेत्रों में भी खेती सुनहरे भविष्य का रास्ता खोल सकती है। उचित सरकारी सहायता और सब्सिडी मिलने पर न सिर्फ खजूर बल्कि कई अन्य नकदी फसलों को भी बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा सकता है।
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