आम के बीज से बने हाइड्रोजेल को BAU को मिला पेटेंट

Agri News

पटना, 22 अगस्‍त (कृषि भूमि ब्यूरो):

कृषि के क्षेत्र में इनोवेशन की दिशा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर ने एक अहम उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय को आम के बीजों से विकसित किए गए एक विशेष हाइड्रोजेल के लिए भारत सरकार से पेटेंट प्राप्त हुआ है। यह खोज कृषि क्षेत्र में टिकाऊ समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है, जो जल संकट और मिट्टी की गुणवत्ता से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने में सहायक होगी।

हाइड्रोजेल की विशेषता: 400% अधिक जल धारण क्षमता

BAU के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह हाइड्रोजेल जल अवशोषण की क्षमता में लगभग 400% तक की वृद्धि दिखाता है। सामान्य हाइड्रोजेल की तुलना में यह नवप्रवर्तित जैविक उत्पाद विशेष रूप से पजल मिट्टी (clay loam soil) में नमी बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुआ है। यह विशेषता ऐसे इलाकों में बेहद उपयोगी है, जहां मानसून की अनिश्चितता और जल का सीमित उपयोग किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है।

आम के बीज से “Waste to Wealth” की अवधारणा

इस शोध का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें आम के फलों के बीज, जो अब तक बेकार समझे जाते थे, को उपयोगी संसाधन में बदला गया है। भारत विश्व में आम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, और हर साल टनों के हिसाब से आम के बीज कृषि कचरे में तब्दील हो जाते हैं। BAU के वैज्ञानिकों ने इसी कृषि अपशिष्ट को तकनीकी नवाचार के ज़रिए “वेस्ट से वेल्थ” में परिवर्तित कर दिया है।

किसानों को मिलेगा आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ

इस जैव-आधारित हाइड्रोजेल के उपयोग से किसानों को सिंचाई लागत में कटौती, फसल उत्पादन में वृद्धि और मृदा की जल धारण क्षमता में सुधार जैसे कई लाभ मिल सकते हैं। चूंकि यह पूरी तरह जैविक और पर्यावरण के अनुकूल है, इसलिए यह रासायनिक हाइड्रोजेल्स के विकल्प के रूप में उभर सकता है, जो लंबे समय में मृदा और पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।

कृषि नवाचार के क्षेत्र में BAU की बड़ी उपलब्धि

BAU की इस उपलब्धि को “स्मार्ट और सतत कृषि की दिशा में मील का पत्थर” बताया जा रहा है। विश्वविद्यालय अब इस उत्पाद को बड़े पैमाने पर किसानों तक पहुंचाने की योजना बना रहा है। इसके लिए राज्य सरकार और निजी कंपनियों से सहयोग लिया जा रहा है ताकि यह हाइड्रोजेल खेतों तक पहुंच सके और किसानों के लिए वास्तविक लाभ सुनिश्चित हो। यदि इसे बड़े स्तर पर अपनाया गया, तो यह तकनीक न केवल कृषकों की आय बढ़ाने में मदद करेगी बल्कि सतत कृषि विकास की दिशा में भी बड़ी भूमिका निभाएगी।

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