नई दिल्ली, 06 अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):
हरिद्वार में आयोजित एक किसान संवाद कार्यक्रम (Farmers’ Dialogue Program) के दौरान भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता और प्रमुख किसान नेता राकेश टिकैत ने विदेशी व्यापार समझौतों को लेकर केंद्र सरकार को कड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका जैसे देशों के साथ होने वाले डेयरी व कृषि उत्पादों के व्यापारिक समझौतों में देश के किसानों के हितों से समझौता नहीं करना चाहिए।
किसान नेता राकेश टिकैत का बयान:
“किसान पहले से ही बढ़ती लागत, घटती फसल कीमतों और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। अगर सरकार विदेशी कंपनियों और देशों के दबाव में आकर डेयरी और कृषि बाजार (Agri Market) खोलती है, तो इससे छोटे व मध्यम किसान तबाह हो जाएंगे।”
क्या टिकैत की चिंता वाजिब है?
अमेरिका जैसे देशों की डेयरी कंपनियां अत्याधुनिक तकनीक और बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं, जिससे उनके उत्पाद भारत (India) के बाजार में सस्ते दरों पर आ सकते हैं। इससे स्थानीय डेयरी किसान, खासकर जो 1–3 गाय/भैंस पालकर अपना गुज़ारा करते हैं, प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट सकते हैं।
फसल बीमा, MSP और फसल भंडारण जैसी मूलभूत चुनौतियों से जूझ रहे भारतीय किसान अगर अंतरराष्ट्रीय दवाब में सस्ते कृषि आयात से टकराएंगे, तो उनकी उत्पादन लागत व लाभ का अंतर और अधिक घाटे में बदल सकता है।
विदेशी कृषि आयात से देश के भीतर फसल की कीमतें गिर सकती हैं, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का महत्व और लाभ भी खतरे में पड़ सकता है। राकेश टिकैत के बयान को केवल राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि नीति निर्धारकों के लिए एक चेतावनी संकेत माना जाना चाहिए। वैश्वीकरण के दौर में व्यापार समझौते अनिवार्य हैं, लेकिन कृषि-प्रधान देश होने के नाते भारत को अपने किसानों की आजीविका की रक्षा प्राथमिकता पर रखनी होगी।
कुलमिलाकर, किसानों के मुद्दों को व्यापारिक सौदेबाज़ी में बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता। टिकैत का बयान कृषि क्षेत्र की गहराई से जुड़ी भू-राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जटिलताओं की ओर संकेत करता है। भारत को यदि विदेशी बाजारों से जुड़ना है, तो समान शर्तों पर और किसानों के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर ही समझौते करने होंगे। वरना भारत के गांवों में बसी कृषक रीढ़ को कमजोर करने का खतरा बना रहेगा।
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