मुंबई, 14 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत में 2024-25 मार्केटिंग वर्ष (नवंबर–अक्टूबर) के दौरान खाद्य तेलों की मांग और आयात ने एक दिलचस्प रुझान दिखाया है। कुल खाद्य तेल आयात लगभग 16.3 मिलियन टन तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष के लगभग समान स्तर पर है। इससे स्पष्ट होता है कि देश में कुल मांग अब स्थिर हो चुकी है। न तो उपभोग में बहुत वृद्धि हुई है, और न ही कोई तेज गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, इस वर्ष आयात संरचना, स्रोत देशों, और तेलों की श्रेणी में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले, जो आने वाली नीतियों और बाजार रणनीतियों को प्रभावित कर सकते हैं।
इस वर्ष की सबसे उल्लेखनीय बात नेपाल से बड़े पैमाने पर रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल का आयात रहा। SAFTA समझौते के तहत भारत ने लगभग 7.46 लाख टन तेल नेपाल से शुल्क मुक्त आयात किया, जिसने घरेलू बाजार में कीमतों, प्रतिस्पर्धा और रिफाइनरी सेक्टर की स्थिरता को प्रभावित किया।
मांग फ्लैट क्यों? उपभोग पैटर्न में बड़ा बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में महामारी के बाद उपभोग बढ़ा था, लेकिन अब वह स्थिर स्तर पर आ गया है। ऊंची कीमतों ने उपभोक्ताओं को सीमित खरीदारी करने पर मजबूर किया है। साथ ही, स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ने से प्रति व्यक्ति तेल खपत में हल्की कमी आई है। फूड प्रोसेसिंग और होटल-रेस्तरां उद्योग में मांग बढ़ी, लेकिन घरेलू उपभोग में उतार-चढ़ाव रहा। इन दोनों कारकों के बीच संतुलन के कारण कुल मांग स्थिर दिखाई दी।
सोयाबीन तेल का रिकॉर्ड उछाल
2024-25 में खाद्य तेल आयात की केटेगरी में बदलाव नज़र आ रहा है। सोयाबीन ऑयल का आयात 3.44 मिलियन टन से बढ़कर 5.47 मिलियन टन हो गया, जो लगभग 59 प्रतिशत की वृद्धि है। इसके विपरीत, पाम ऑयल आयात 90.15 लाख टन से घटकर लगभग 75.82 लाख टन रह गया। पाम ऑयल को कभी सस्ता विकल्प माना जाता था, लेकिन वैश्विक उत्पादन लागत बढ़ने और सप्लाई चेन में अस्थिरता के कारण भारत में इसकी हिस्सेदारी कम हो गई है। इसी प्रकार सनफ्लावर ऑयल का आयात 35.06 लाख टन से गिरकर 29.36 लाख टन पर आ गया, जो यूक्रेन-रूस क्षेत्र में सप्लाई बाधाओं और कीमतों में उतार-चढ़ाव का परिणाम है।
नेपाल नया प्रमुख सप्लायर क्यों बन रहा है?
नेपाल से भारत में रिफाइंड ऑयल का आयात बढ़ना एक नया और महत्वपूर्ण ट्रेंड है। नेपाल में हाल के वर्षों में कई रिफाइनरियाँ स्थापित हुई हैं जो भारत से कम लागत पर उत्पादन कर सकती हैं। SAFTA समझौते के मुताबिक नेपाल से आने वाला रिफाइंड तेल शुल्क मुक्त होता है, जिससे यह भारतीय बाजार में सस्ता उपलब्ध होता है। इससे घरेलू रिफाइनरियों पर दबाव बढ़ा है, क्योंकि वे इन कीमतों पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नेपाल से शून्य शुल्क पर बढ़ता आयात भारत के तेल उद्योग की संरचना को बदल सकता है।
आयात बिल अब तक का सबसे ऊंचा: भारत क्यों दे रहा है 1.61 लाख करोड़?
हालांकि आयात की मात्रा लगभग स्थिर रही, लेकिन 2024-25 में भारत का खाद्य तेल आयात बिल 1.61 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 22-23 प्रतिशत अधिक है। वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी, डॉलर की मजबूती और सप्लाई में अनिश्चितता इस बढ़े हुए खर्च के मुख्य कारण रहे। पिछले 20 वर्षों में जहाँ खाद्य तेल आयात मात्रा केवल 2.2 गुना बढ़ी है, वहीं आयात लागत 15 गुना बढ़ गई है। यह दर्शाता है कि भारत की आयात पर निर्भरता गंभीर स्तर पर पहुँच चुकी है।
क्या भारत में लोग कम तेल खा रहे हैं?
डेटा बताता है कि भारत में खाने के तेल की कुल खपत स्थिर है या हल्की गिरावट पर है। उपभोक्ता अब स्वास्थ्य के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक हैं और कम तेल वाले खाद्य पदार्थों की तरफ झुकाव बढ़ा है। इसके अलावा कीमतों के बढ़ने से आम परिवार अपनी मासिक तेल खपत सीमित कर रहे हैं। फूड प्रोसेसिंग सेक्टर की मांग बढ़ी है, लेकिन घरेलू मांग में उतार-चढ़ाव ने कुल उपभोग को फ्लैट रखा है।
भारत को क्या कदम उठाने चाहिए?
भारत के लिए यह स्थिति संकेत देती है कि घरेलू तेलहन फसलों जैसे सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। तेल बीजों की उन्नत किस्में विकसित करने, किसानों को अधिक समर्थन देने, और घरेलू रिफाइनिंग सेक्टर को मजबूत करने की दिशा में नीतिगत प्रयास आवश्यक होंगे। कई एक्सपर्ट्स यह भी सुझाव दे रहे हैं कि नेपाल से शुल्क मुक्त आयात की शर्तों की दोबारा समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि घरेलू उद्योग संतुलित रह सके।
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