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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत सरकार के कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा मूंगफली निर्यात को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, जिससे निर्यातकों में चिंता का माहौल है। इन दिशानिर्देशों के तहत गुणवत्ता नियंत्रण, प्रमाणन, और सैंपलिंग प्रक्रियाओं को और अधिक कड़ा बना दिया गया है, जिससे भारत से मूंगफली का निर्यात करना अब और अधिक जटिल हो गया है।

एपीडा ((APEDA) ने इन नियमों को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को ध्यान में रखते हुए लागू किया है। लेकिन निर्यातकों का कहना है कि इन बदलावों से निर्यात लागत बढ़ेगी और प्रक्रियाएं जटिल हो जाएंगी, जिससे उनके प्रतिस्पर्धी देशों से मुकाबला करना कठिन होगा।

नए नियमों की मुख्य बातें:

  1. कड़े गुणवत्ता मानक:
    अब मूंगफली की हर खेप को कड़े माइकोटॉक्सिन और अफ्लाटॉक्सिन परीक्षणों से गुजरना होगा।
  2. प्रमाणन अनिवार्य:
    मूंगफली निर्यात के लिए अब APEDA से प्रमाणित प्रयोगशालाओं से जांच रिपोर्ट अनिवार्य कर दी गई है।
  3. सैंपलिंग पर निगरानी:
    निर्यात के लिए भेजी जाने वाली खेपों से सरकारी पर्यवेक्षण में सैंपल लिए जाएंगे, जिससे फर्जी रिपोर्ट की गुंजाइश खत्म हो सके।
  4. निर्यात लागत में वृद्धि:
    सैंपलिंग, परीक्षण और प्रमाणन की बढ़ी हुई लागत को लेकर निर्यातकों ने चिंता जाहिर की है।

एक्सपोर्टर्स की राय
एक प्रमुख निर्यातक ने बताया, “हम गुणवत्ता मानकों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन प्रक्रियाओं को इस हद तक जटिल बना देना छोटे और मझोले निर्यातकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। इससे हमारा मूंगफली निर्यात प्रभावित हो सकता है।”

एपीडा अधिकारियों का कहना है कि इन उपायों का उद्देश्य भारत की छवि एक भरोसेमंद निर्यातक देश के रूप में मजबूत करना है, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय मूंगफली की स्वीकार्यता बनी रहे।

भारत दुनिया में मूंगफली के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में शामिल है। वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और मध्य पूर्व जैसे देशों में भारतीय मूंगफली की अच्छी मांग है। लेकिन नए नियमों से निर्यात की गति पर असर पड़ सकता है, खासकर छोटे निर्यातकों के लिए।

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