नई दिल्ली, 24 सितंबर (कृषि भूमि ब्यूरो):
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर विचार शुरू कर दिया है, जिसके तहत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) को अब सोने और चाँदी जैसे कीमती धातुओं के डेरिवेटिव मार्केट में निवेश की अनुमति मिल सकती है।
क्या है मौजूदा स्थिति
वर्तमान में FPI निवेशकों को केवल कुछ चुनिंदा कमोडिटी डेरिवेटिव्स तक ही निवेश की अनुमति है। इन निवेशों का दायरा सीमित होने के कारण भारतीय कमोडिटी बाजार की गहराई और वैश्विक आकर्षण उतना नहीं बढ़ पाया है जितना अपेक्षित था। यदि यह नया प्रस्ताव अमल में आता है तो FPIs को मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) जैसे प्लेटफॉर्म पर गोल्ड और सिल्वर फ्यूचर्स में निवेश का अवसर मिलेगा।
प्रस्ताव का उद्देश्य
SEBI का कहना है कि इस कदम का मुख्य उद्देश्य भारतीय बाजार को वैश्विक निवेशकों के साथ जोड़ना और कीमतों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। सोने और चाँदी जैसे कीमती धातुओं का वैश्विक स्तर पर बड़ा महत्व है और इनमें विदेशी पूंजी का प्रवाह भारतीय बाजार को और मजबूती देगा। इससे घरेलू निवेशकों को भी बेहतर दाम और अधिक विकल्प मिल सकेंगे।
संभावित फायदे
तरलता में बढ़ोतरी – विदेशी निवेश से ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ेगा, जिससे बाजार ज्यादा सक्रिय होगा।
कीमतों में पारदर्शिता – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों के साथ तालमेल बेहतर होगा।
भारत को हब बनाने की दिशा में कदम – लंबे समय में भारत को एशिया का प्रमुख कमोडिटी ट्रेडिंग हब बनाने में मदद मिलेगी।
निवेशकों का विश्वास – विदेशी निवेशकों की भागीदारी से भारतीय बाजार की विश्वसनीयता और बढ़ेगी।
विशेषज्ञों की माने तो
कमोडिटी बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रस्ताव लंबे समय में भारत को कमोडिटी ट्रेडिंग के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना सकता है। हालांकि, इसके साथ ही वे यह भी मानते हैं कि रिस्क मैनेजमेंट, मजबूत रेगुलेटरी फ्रेमवर्क और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होगी।
एक विशेषज्ञ के मुताबिक, “भारत में सोना और चाँदी की खपत बहुत अधिक है। यदि विदेशी निवेशक भी इन धातुओं के डेरिवेटिव में भाग लेंगे, तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बीच बेहतर संतुलन बन सकेगा। लेकिन इसके साथ-साथ मार्केट रेगुलेशन को और कड़ा करना होगा।”
संभावित चुनौतियां
रिस्क मैनेजमेंट: कीमती धातुओं की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। इसके लिए प्रभावी हेजिंग मैकेनिज़्म जरूरी होगा।
रेगुलेटरी निगरानी: बड़े पैमाने पर विदेशी पूंजी के प्रवेश से बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
इंफ्रास्ट्रक्चर विकास: ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और निगरानी तंत्र को और मज़बूत करने की आवश्यकता होगी।
SEBI ने अभी यह प्रस्ताव विचाराधीन रखा है और जल्द ही उद्योग जगत और निवेशकों से फीडबैक लेने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यदि सब कुछ योजनानुसार होता है तो आने वाले महीनों में FPIs को सोना-चाँदी डेरिवेटिव में निवेश की मंजूरी मिल सकती है।
SEBI का यह कदम भारतीय कमोडिटी बाजार के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। जहां एक ओर यह विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा, वहीं दूसरी ओर बाजार की गहराई और पारदर्शिता भी बढ़ेगी। लेकिन सफलता तभी संभव होगी जब इसके साथ मजबूत रेगुलेटरी तंत्र और जोखिम प्रबंधन की ठोस व्यवस्था भी लागू की जाए। यदि सबकुछ सही दिशा में आगे बढ़ा, तो आने वाले समय में भारत वैश्विक कमोडिटी ट्रेडिंग में अपनी नई पहचान बना सकता है।
===
हमारे लेटेस्ट अपडेट्स और खास जानकारियों के लिए अभी जुड़ें — बस इस लिंक पर क्लिक करें: