पूर्वोत्तर के छोटे चाय उत्पादकों ने हरी पत्तियों के लिए MSP की मांग तेज की, PM को भेजा ज्ञापन

नई दिल्ली, 18 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): पूर्वोत्तर भारत के छोटे चाय उत्पादकों ने हरी चाय पत्तियों की गिरती कीमतों के बीच सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागू करने की मांग तेज कर दी है। क्षेत्र के छोटे चाय उत्पादकों के छह प्रमुख संगठनों ने बीते हफ्ते गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त ज्ञापन भेजकर कहा कि अस्थिर बाजार कीमतों ने उनकी आय पर गंभीर दबाव डाला है, इसलिए MSP या उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP) का प्रावधान आवश्यक है।

क्यों बढ़ी MSP/FRP की मांग?
नॉर्थ ईस्ट कॉन्फेडरेशन ऑफ स्मॉल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन ने ज्ञापन में कहा कि मौजूदा कीमतें उत्पादन लागत को भी पूरा नहीं कर पा रहीं। इस वर्ष हरी चाय पत्ती की औसत कीमत लगभग ₹20 प्रति किलोग्राम रही है, जबकि उत्पादकों का कहना है कि उन्हें कम से कम ₹25 से ₹35 प्रति किलो लागत-आधारित MSP मिलना चाहिए।

उत्पादकों का तर्क है कि MSP उन्हें बाजार की अनिश्चितता से सुरक्षा देगा, जैसे कृषि क्षेत्र की 22 प्रमुख फसलों के लिए MSP का प्रावधान किसानों को कीमत गिरावट के समय एक सुरक्षा कवच देता है। उनका कहना है कि चाय उत्पादन का कार्य आधा कृषि और आधा उद्योग है, इसलिए किसानों द्वारा उगाई और तोड़ी जाने वाली हरी पत्तियों को कृषि फसल की तरह ही MSP के दायरे में लाया जाना चाहिए।

पूर्वोत्तर में 1.25 लाख से अधिक छोटे चाय उत्पादक (STGs) हैं, जिनमें से लगभग 1.22 लाख अकेले असम में स्थित हैं। असम दुनिया का सबसे बड़ा ‘कॉन्टिग्युअस’ (समीपवर्ती) चाय उगाने वाला क्षेत्र है और भारत के कुल चाय उत्पादन का 52% से अधिक यहीं होता है। इसमें CTC, पारंपरिक, जैविक और GI-टैग वाली विशेष किस्में शामिल हैं।

उत्पादकों ने कहा कि इतने बड़े उत्पादन केंद्र में यदि कीमतें नीचे रहती हैं, तो इसका असर लाखों परिवारों की आय पर पड़ता है, क्योंकि छोटे उत्पादकों की आजीविका पूरी तरह हरी पत्तियों की बिक्री पर निर्भर होती है।

मौजूदा मूल्य प्रणाली पर सवाल
छोटे चाय उत्पादकों का कहना है कि वर्तमान मूल्य साझाकरण फार्मूला (PSF) और Tea Board द्वारा घोषित Average Green Leaf Price (AGLP) उनके लिए कारगर नहीं है। उन्होंने ज्ञापन में लिखा कि यह व्यवस्था “उत्पादकों और निर्माताओं के बीच दरार पैदा कर रही है” और लागत के अनुरूप उचित आय सुनिश्चित नहीं कर पा रही।

उनका मानना है कि यदि गन्ने के लिए FRP जैसी प्रणाली प्रभावी ढंग से लागू की जा सकती है, तो चाय उत्पादकों के लिए भी MSP या FRP मॉडल तैयार किया जा सकता है, जिससे उन्हें स्थिर और न्यायसंगत कीमत प्राप्त हो सकेगी।

क्या सरकार कदम उठाएगी?
केंद्र सरकार पहले भी चाय उद्योग के पुनर्गठन और छोटे उत्पादकों के लिए नीतिगत सुधारों की बात कह चुकी है, लेकिन MSP की मांग पहली बार इतनी जोरदार तरीके से सामने आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि चाय को MSP ढांचे में शामिल करने के लिए बड़ा नीतिगत बदलाव जरूरी होगा, क्योंकि चाय पत्ती न तो पारंपरिक कृषि फसल की तरह मार्केटेड है और न ही इसके लिए सरकारी खरीद प्रणाली मौजूद है।

हालांकि, छोटे चाय उत्पादकों का कहना है कि यदि मूल्य सुधार नहीं हुए, तो उद्योग में जीविका संकट और बाजार निर्भरता बढ़ती जाएगी।

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