नई दिल्ली, 24 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): पश्चिम बंगाल का जूट उद्योग इस समय गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। कच्चे जूट की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद राज्य की कई जूट मिलों ने अपना उत्पादन तेज़ी से घटा दिया है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कुछ मिलें अपने पुराने और दीर्घकालिक सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट तक पूरे नहीं कर पा रही हैं।
उद्योग सूत्रों के अनुसार, कच्चे जूट की कीमत ₹1,10,000 प्रति टन से ऊपर निकल गई है, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर माना जा रहा है।
लगभग दोगुना हुआ भाव
जुलाई तक यही कच्चा जूट लगभग ₹60,000 प्रति टन के आसपास उपलब्ध था। महज कुछ महीनों में कीमत के लगभग दोगुना हो जाने से जूट मिलों की लागत बेकाबू हो गई है।
स्थिति को और गंभीर बनाते हुए, बाजार में व्यापारी और स्टॉकिस्ट भी बिक्री से पीछे हट गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि कीमतें और ऊपर जा सकती हैं, इसलिए वे माल रोककर बैठे हैं। नतीजा यह है कि कई मिलों को कच्चा माल मिल ही नहीं पा रहा।
सीमित शिफ्ट में चल रही हैं जूट मिलें
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, हुगली औद्योगिक क्षेत्र की कई जूट मिलें अब हफ्ते में सिर्फ 10 से 15 शिफ्ट ही चला पा रही हैं, जबकि सामान्य संचालन के लिए इससे कहीं ज्यादा शिफ्ट जरूरी होती हैं।
जिन मिलों के पास थोड़ा-बहुत स्टॉक बचा है, वे भी उसे बचाकर इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि पूरी तरह बंद होने की नौबत न आए।
संकट की बड़ी वजह: बांग्लादेश का निर्यात प्रतिबंध
इस पूरे संकट की सबसे बड़ी वजह बांग्लादेश का कच्चे जूट के निर्यात पर प्रतिबंध माना जा रहा है। बांग्लादेश सरकार ने 8 सितंबर 2025 से कच्चे जूट के निर्यात पर अचानक रोक लगा दी, जिससे भारतीय बाजार में सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई और कीमतों में असामान्य उछाल देखने को मिला।
भारतीय जूट उद्योग लंबे समय से बांग्लादेश से आयातित कच्चे जूट पर निर्भर रहा है। ऐसे में यह फैसला उद्योग के लिए गंभीर झटका साबित हुआ है।
इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (IJMA) ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। संगठन ने केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि बांग्लादेश के फैसले से कच्चे माल की सप्लाई अचानक टूट गई है।
उनके अनुसार, इससे जूट मिलों पर भारी वित्तीय जोखिम पैदा हो गया है और कीमतें असामान्य स्तर पर पहुंच गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इसका असर सिर्फ मिलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि रोजगार और पूरी जूट वैल्यू चेन खतरे में पड़ सकती है।
बंद होने लगीं मिलें, रोजगार पर खतरा
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कुछ जूट मिलें पहले ही अस्थायी रूप से बंद हो चुकी हैं, जबकि कई अन्य मिलों ने काम के घंटे और शिफ्ट में भारी कटौती कर दी है।
अधिकांश मिलें फिलहाल न्यूनतम क्षमता पर ही काम कर रही हैं। अगर हालात नहीं सुधरे, तो आने वाले हफ्तों में संकट और गहराने की आशंका जताई जा रही है।
जूट बीज पर भी उठा बड़ा सवाल
IJMA ने एक और अहम मुद्दा उठाया है। संगठन का कहना है कि बांग्लादेश आज भी अपनी जूट खेती और निर्यात के लिए भारत पर निर्भर है, खासकर हाई यील्डिंग वैरायटी (HYV) जूट बीजों के मामले में। इसके बावजूद बांग्लादेश भारतीय मिलों को कच्चा जूट देने से इनकार कर रहा है, जिसे संगठन ने द्विपक्षीय व्यापार में असंतुलन करार दिया है।
इसी आधार पर IJMA ने भारत सरकार से मांग की है कि बांग्लादेश को जूट बीज, खासकर HYV किस्मों के निर्यात पर रोक लगाई जाए। संगठन का मानना है कि इससे देश में बीजों की उपलब्धता बनी रहेगी, किसानों के हित सुरक्षित होंगे और जूट व्यापार में संतुलन लौट सकेगा।
गौरतलब है कि कच्चे जूट की रिकॉर्ड महंगाई, सप्लाई में कमी और अंतरराष्ट्रीय फैसलों ने पश्चिम बंगाल के जूट उद्योग को गंभीर संकट में डाल दिया है। यदि सरकार की ओर से तत्काल नीतिगत और कूटनीतिक हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो इसका असर उत्पादन, रोजगार और देश के पारंपरिक जूट उद्योग पर लंबे समय तक देखने को मिल सकता है।
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