मुंबई, 29 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): योग गुरु बाबा रामदेव के ‘स्वदेशी’ अभियान की नींव पर खड़ी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड एक बार फिर उपभोक्ताओं के भरोसे की कसौटी पर खरी नहीं उतर पाई है। ताज़ा मामला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से सामने आया है, जहाँ चार साल पुराने एक सैंपल की जांच के बाद कंपनी और संबंधित कारोबारियों पर कुल ₹1.40 लाख का भारी जुर्माना लगाया गया है। मामला पतंजलि के गाय के घी की गुणवत्ता से जुड़ा है, जिसके नमूने राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तर की प्रयोगशालाओं में ‘मानकों से नीचे’ (सब-स्टैंडर्ड) पाए गए हैं। यह घटना केवल एक जुर्माने तक सीमित नहीं है, बल्कि उस ‘शुद्धता’ और ‘स्वदेशी‘ के दावे पर एक तीखा सवाल है, जिसके दम पर पतंजलि ने भारतीय बाज़ार में अपनी एक मज़बूत जगह बनाई है।
उत्तराखंड के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने अक्टूबर 2020 में पिथौरागढ़ के एक स्टोर से पतंजलि गाय के घी का नमूना लिया था। शुरुआती जांच के लिए इसे रुद्रपुर स्थित राजकीय प्रयोगशाला भेजा गया, जहाँ रिपोर्ट में घी को मानकों पर खरा नहीं पाया गया। जब कंपनी को इस बारे में सूचित किया गया, तो पतंजलि ने दोबारा जांच की मांग करते हुए राष्ट्रीय खाद्य प्रयोगशाला, गाजियाबाद में सैंपल भेजने का अनुरोध किया। एक स्थापित प्रक्रिया के तहत, ₹5000 शुल्क जमा करने के बाद दोबारा जांच कराई गई। लेकिन उपभोक्ताओं के लिए चिंता की बात यह है कि गाजियाबाद की राष्ट्रीय प्रयोगशाला से आई रिपोर्ट ने भी पहली रिपोर्ट की पुष्टि कर दी। पतंजलि का ‘शुद्ध’ गाय का घी एक बार फिर गुणवत्ता की कसौटी पर फिसल गया।
लगा ₹1.40 लाख का जुर्माना
खाद्य सुरक्षा विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए विस्तृत अध्ययन और सुनवाई के बाद न्याय निर्णायक अधिकारी/एडीएम पिथौरागढ़ के न्यायालय में प्रस्तुत किया। न्यायालय ने तमाम सबूतों और दोनों लैब की रिपोर्टों पर विचार करने के बाद हाल ही में अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के तहत, घी की निर्माता कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड पर ₹1,00,000, डिस्ट्रीब्यूटर ब्रह्म एजेंसी पर ₹25,000 और स्थानीय विक्रेता करण जनरल स्टोर पर ₹15,000 का जुर्माना लगाया गया। अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि मानकों से नीचे गुणवत्ता वाले इस घी के सेवन से आम जनता के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकते थे।
पहले भी शुद्धता की कसौटी पर फिसला पतंजलि
यह पहली बार नहीं है जब पतंजलि के उत्पादों की गुणवत्ता पर इस तरह के गंभीर सवाल उठे हैं। बीते वर्षों में भी कई उत्पादों के नमूने लैब टेस्ट में फेल हुए हैं, और कंपनी पर भ्रामक विज्ञापन और गुणवत्ता से जुड़े अन्य आरोपों के चलते कार्रवाई हो चुकी है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब पतंजलि, योग और आयुर्वेद के नाम पर ‘स्वस्थ भारत’ के सपने को भुनाने में जुटी है। लेकिन क्या स्वास्थ्य और शुद्धता के नाम पर बाज़ार में उतारा जा रहा उत्पाद ही यदि घटिया निकले, तो यह उपभोक्ताओं के साथ सीधा धोखा नहीं है? क्या आम भारतीय, जो बाबा रामदेव के स्वदेशी नारे पर भरोसा करता है, इस तरह के उत्पादों को खरीदने के बाद खुद को ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा?
एक तरफ जहाँ कंपनी अपने विज्ञापनों में अपने उत्पादों को सबसे शुद्ध और प्राकृतिक बताकर प्रचार करती है, वहीं दूसरी तरफ नियामक संस्थाओं की जांच में उसका घी ‘खाने लायक नहीं’ पाया जाता है। यह विसंगति भारतीय खाद्य सुरक्षा नियामक संस्थाओं (FSSAI) और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की महत्ता को रेखांकित करती है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाती है कि एक बड़े ब्रांड की बार-बार की विफलताओं के बाद भी क्या उस पर केवल आर्थिक जुर्माना लगाना पर्याप्त है? आम उपभोक्ता की सेहत और उस भरोसे का क्या, जो ब्रांड की छवि पर टिके होते हैं? पतंजलि को अब न सिर्फ जुर्माना चुकाना होगा, बल्कि देश की जनता को यह भी समझाना होगा कि बार-बार उठ रहे इन सवालों के बावजूद उसके उत्पाद वाकई शुद्ध हैं या फिर यह सिर्फ एक और बड़ा व्यापारिक धोखा है।
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