कृषि सखी मॉडल: उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए बना आय का सशक्त माध्यम, सालाना 80 हज़ार रुपये तक की कमाई

लखनऊ, 25 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि ब्यूरो): उत्तर प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में ‘कृषि सखी’ मॉडल एक बड़ी सफलता बनकर उभरा है। योगी सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों (SHG) से जुड़ी महिलाएँ अब खेती-किसानी में विशेषज्ञ बनकर न केवल किसानों की मदद कर रही हैं, बल्कि स्वयं के लिए सालाना 60,000 से 80,000 रुपये तक की अतिरिक्त आय भी अर्जित कर रही हैं। यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

कौन हैं कृषि सखी और उनकी भूमिका?

‘कृषि सखी’ ऐसी प्रशिक्षित महिलाएँ हैं, जिन्हें कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत पैरा-एक्सटेंशन वर्कर (Para-Extension Worker) के रूप में प्रमाणित किया गया है।

  • प्रशिक्षण: कृषि सखियों को उन्नत कृषि पद्धतियों, बीज उपचार, मृदा स्वास्थ्य, जैविक खेती, पशुधन प्रबंधन और फसल संरक्षण जैसे विषयों पर 56 दिनों का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।

  • कार्य: वे गाँवों में जाकर अन्य किसानों, विशेषकर महिला किसानों को आधुनिक तकनीकों के बारे में बताती हैं। वे किसानों को सरकारी योजनाओं की जानकारी देती हैं और छोटे स्तर पर बायो-इनपुट (जैसे जैविक खाद और कीटनाशक) बनाने और बेचने में भी मदद करती हैं।

  • आय का स्रोत: अपनी सेवाओं के बदले, कृषि सखियों को प्रतिमाह ₹4,500 से ₹5,000 तक का संसाधन शुल्क (Resource Fee) प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन (Performance-Based Incentives) और किसानों को सेवाएँ देने से होने वाली कमाई भी मिलती है, जिससे उनकी कुल वार्षिक आय ₹60,000 से ₹80,000 तक पहुँच जाती है।

योगी सरकार के प्रमुख आँकड़े

कृषि सखी मॉडल, राज्य के व्यापक ‘मिशन शक्ति’ और ‘लखपति दीदी’ कार्यक्रम का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में तेज़ी से वृद्धि हुई है:

  • स्वयं सहायता समूह (SHG) नेटवर्क: 2025 तक, उत्तर प्रदेश में महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों की संख्या लगभग 95 लाख तक पहुँच गई है।

  • समूहों की वार्षिक आय: राज्य में संचालित स्वयं सहायता समूहों की कुल वार्षिक आय 2017 में लगभग ₹4,000 करोड़ थी, जो 2025 तक बढ़कर ₹18,000 करोड़ से अधिक हो गई है।

  • वित्तीय समावेशन: ‘बीसी सखी’ (बैंक सखी) मॉडल ने भी ग्रामीण बैंकिंग में क्रांति ला दी है। बीसी सखियों ने अब तक ₹32,000 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय लेनदेन किया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर तक बैंकिंग सेवाएँ पहुँची हैं।

  • श्रम शक्ति में भागीदारी: विगत कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में महिला श्रम शक्ति भागीदारी 14 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत तक पहुँच गई है, जो महिला सशक्तीकरण के नए युग का स्पष्ट संकेत है।

आत्मनिर्भरता की नई मिसाल

कृषि सखी मॉडल केवल महिलाओं को पैसा कमाने का ज़रिया नहीं दे रहा है, बल्कि उन्हें ग्रामीण विकास और तकनीकी ज्ञान का केंद्र बना रहा है। अयोध्या जैसे ज़िलों में ‘क्रांति दीदी’ जैसी कृषि सखियाँ ऋण लेकर अपना कारोबार बढ़ा रही हैं और अन्य महिलाओं को भी रोज़गार दे रही हैं।

यह मॉडल साबित करता है कि जब महिलाओं को सही प्रशिक्षण और अवसर मिलते हैं, तो वे न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे कृषि समुदाय की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह पहल उत्तर प्रदेश को महिला नेतृत्व वाले विकास के पथ पर आगे बढ़ा रही है।

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