अहमदाबाद, 30 जुलाई (कृषि भूमि डेस्क):
गुजरात (Gujarat) के स्वादिष्ट केसर आम (Kesar Mango) अब न सिर्फ भारत देश में, बल्कि वैश्विक (World) बाजारों में भी अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। राज्य सरकार द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में गुजरात से 856 मीट्रिक टन आमों का निर्यात (Export) किया गया है। इससे पहले के पांच वर्षों (2019-20 से 2024-25) के दौरान कुल निर्यात 3,000 मीट्रिक टन के आंकड़े को पार कर गया है, जो राज्य के आम उत्पादकों और बागवानी (Horticulture) क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
राज्य के कृषि मंत्री राघवजी पटेल ने इस उपलब्धि पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि गुजरात के केसर आम की अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि वैश्विक मांग को देखते हुए राज्य सरकार किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों, विपणन सहायता और प्रसंस्करण सुविधाओं के माध्यम से व्यापक सहयोग प्रदान कर रही है।
आम की खेती में गुजरात अग्रणी
गुजरात में बागवानी फसलों के अंतर्गत कुल 4.71 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती की जाती है, जिसमें से अकेले आम की खेती 1.77 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में होती है — यानी बागवानी क्षेत्र का लगभग 37 प्रतिशत। राज्य के वलसाड, नवसारी, गिर-सोमनाथ, कच्छ और सूरत जैसे ज़िलों में आम की खेती बड़े पैमाने पर होती है:
– वलसाड: 38,000 हेक्टेयर
– नवसारी: 34,800 हेक्टेयर
– गिर-सोमनाथ: 18,400 हेक्टेयर
– कच्छ: 12,000 हेक्टेयर
– सूरत: 10,200 हेक्टेयर
गिर का केसर आम — ग्लोबल पहचान
विशेष रूप से तलाला गिर का केसर आम अपनी अनुपम मिठास, सुगंध और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इसे GI टैग भी प्राप्त है, जो इसकी विशिष्ट भौगोलिक पहचान को दर्शाता है। हाल के वर्षों में, केसर आम की खेती कच्छ ज़िले तक भी फैल चुकी है।
विकिरण प्रसंस्करण से बढ़ा निर्यात
विदेशों में आम के सफल निर्यात में बावला स्थित गुजरात कृषि विकिरण प्रसंस्करण इकाई की भूमिका अहम रही है। इस वर्ष यहां से 224 मीट्रिक टन केसर आमों का विकिरणीकरण कर निर्यात किया गया है। यह इकाई यूएसडीए-एपीएचआईएस प्रमाणित देश की चौथी और गुजरात की पहली ई-विकिरण सुविधा है। पिछले पांच वर्षों में यहां से कुल 805 मीट्रिक टन आमों का विकिरणीकरण और निर्यात किया जा चुका है।
पहले किसानों को इस प्रक्रिया के लिए आमों को मुंबई भेजना पड़ता था, जिससे लागत बढ़ती थी और गुणवत्ता पर असर पड़ता था। बावला इकाई के संचालन से स्थानीय स्तर पर ही प्रसंस्करण संभव हो गया है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य और निर्यात के नए अवसर मिल रहे हैं।
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