नई दिल्ली, 11 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): कश्मीर में कीटनाशकों से जुड़े कैंसर मामलों में तेज़ी ने सरकार और कृषि विशेषज्ञों दोनों को चिंतित कर दिया है। इसी के चलते जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अब जैविक खेती (Organic Farming) को व्यापक रूप से बढ़ावा देने की शुरुआत की है। अधिकारियों के अनुसार, यह कदम घाटी में कृषि रसायनों के अत्यधिक उपयोग को घटाने और स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। एक्सपर्ट्स इसे कश्मीर में रसायनों के खतरे के बीच हरित पहल बता रहे हैं।
75 हज़ार हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती
राज्य के कृषि मंत्री जावेद अहमद डार ने बताया कि सरकार ने समग्र कृषि विकास कार्यक्रम (Holistic Agriculture Development Programme – HADP) के तहत 75 हज़ार हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती के लिए चुना है। यह पाँच-वर्षीय कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर के कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
श्रीनगर में आयोजित फूड सेफ्टी एंड हेल्थ कन्वेंशन 2025 में मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार लगभग 20 हज़ार हेक्टेयर मौजूदा सेब-बागों को पर्यावरण-अनुकूल और कम-रासायनिक कृषि पद्धतियों में परिवर्तित कर रही है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य केवल उपज बढ़ाना नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य की रक्षा और जैव विविधता की सुरक्षा भी है।”
कैंसर मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी
जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों में कैंसर के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू के अनुसार, 2018 से अब तक प्रदेश में 64 हज़ार से अधिक कैंसर के मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 50,551 मामले घाटी से आए हैं।
पुराने शोध भी इस प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एंड पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी (IJMPO) में प्रकाशित 2010 के अध्ययन में पाया गया कि 2005 से 2008 के बीच कश्मीर में ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 90 प्रतिशत से अधिक मरीज़ वे थे जो बागों में काम करते थे या उनके आसपास रहते/खेलते थे। यह अध्ययन शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (SKIMS) के आँकड़ों पर आधारित था और इसने 10-20 साल तक कीटनाशकों के संपर्क और ब्रेन ट्यूमर के बीच मजबूत संबंध दर्शाया।
सेब-उद्योग में रसायनों का अत्यधिक उपयोग
कश्मीर में सेब उत्पादन घाटी की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, पर विशेषज्ञों के अनुसार यह क्षेत्र अब अत्यधिक कीटनाशक-निर्भर हो गया है। राज्य में हर वर्ष लगभग 4,080 मीट्रिक टन कीटनाशक उपयोग होते हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत से अधिक सेब के बागों में छिड़के जाते हैं। देश में कुल कीटनाशक खपत के मामले में जम्मू-कश्मीर चौथे स्थान पर है, और यहाँ प्रति हेक्टेयर रासायनिक उपयोग सबसे अधिक माना जाता है। उत्पादक अपनी कुल लागत का लगभग 55 प्रतिशत केवल फसल-सुरक्षा पर खर्च करते हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी और चुनौतियाँ
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (SKUAST-K) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तारिक रसूल ने बताया कि जैविक खेती की ओर बदलाव आसान नहीं है। उन्होंने कहा, “जैविक सेब की खेती में बीमारियों और कीटों का प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है। हालाँकि तांबा, सल्फर और बाइकार्बोनेट लवण जैसे कुछ यौगिकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुमति मिली है, फिर भी जैविक सेब की उपज और दिखावट पारंपरिक फलों की तुलना में कम होती है।”
फिर भी डॉ. रसूल का मानना है कि दीर्घकालिक रूप से जैविक खेती ही स्थायी समाधान है, क्योंकि यह न केवल मिट्टी और पर्यावरण की सेहत सुधारती है, बल्कि मानव स्वास्थ्य-जोखिमों को भी कम करती है।
सरकार की आगामी रणनीति
कृषि विभाग ने बागवानों के लिए जैविक प्रशिक्षण कार्यक्रम, बायो-इनपुट सपोर्ट, और प्रमाणन योजनाएँ शुरू करने की घोषणा की है। सरकार किसानों को सब्सिडी आधारित बायो-पेस्टीसाइड्स और कम्पोस्ट यूनिट्स उपलब्ध कराएगी। इसके साथ-साथ, निर्यात गुणवत्ता बढ़ाने के लिए “कश्मीर ऑर्गेनिक एप्पल” ब्रांडिंग पर भी काम चल रहा है।
कुल मिलाकर, कश्मीर में जैविक खेती की यह पहल केवल कृषि सुधार नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य-सुरक्षा का अभियान बन चुकी है। फसल-सुरक्षा और मानव-स्वास्थ्य के बीच संतुलन साधने की चुनौती कठिन है, लेकिन यदि नीति-स्तर पर समर्थन और वैज्ञानिक सहयोग मिला, तो आने वाले वर्षों में कश्मीर भारत का प्रमुख जैविक-कृषि क्षेत्र बन सकता है, जहाँ हर बाग की मिट्टी और हर फल की चमक बिना ज़हर के होगी।
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