लुधियाना, 26 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देश में मक्का आधारित कृषि को नई दिशा देने वाली एक अहम उपलब्धि पंजाब से सामने आई है। ICAR–इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मक्का रिसर्च (IIMR), लुधियाना ने पहली बार किसान के वास्तविक खेत में हाइब्रिड मक्का बीज उत्पादन का सफल फील्ड ट्रायल पूरा किया है। यह उपलब्धि न केवल शोध से खेत तक तकनीक पहुंचाने का उदाहरण है, बल्कि मक्का बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी एक ठोस कदम मानी जा रही है।
अब तक हाइब्रिड मक्का बीज उत्पादन देश में मुख्य रूप से चुनिंदा शोध फार्मों, निजी कंपनियों या नियंत्रित परिस्थितियों तक सीमित रहा है। किसान के खेत में यह प्रयोग सफल होना इस बात का संकेत है कि हाइब्रिड बीज उत्पादन तकनीक अब व्यावहारिक, लागत-प्रभावी और बड़े पैमाने पर अपनाने योग्य हो चुकी है। इससे मक्का बीज की आपूर्ति श्रृंखला को स्थानीय स्तर पर मजबूत करने में मदद मिलेगी।
बीज आयात पर निर्भरता होगी कम
वर्तमान में भारत उच्च गुणवत्ता वाले हाइब्रिड मक्का बीजों के लिए आंशिक रूप से निजी कंपनियों और आयात पर निर्भर है। ICAR-IIMR की इस पहल से स्थानीय बीज उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, जिससे आयात की जरूरत घटेगी और किसानों को समय पर बीज उपलब्ध हो सकेगा। इससे बीज की कीमतों में स्थिरता आने और किसानों की कुल खेती लागत घटने की भी उम्मीद है।
किसानों के लिए दोहरा लाभ
वैज्ञानिकों के अनुसार, स्थानीय स्तर पर हाइब्रिड बीज उत्पादन से किसानों को कई स्तरों पर फायदा होगा। एक ओर वे खरीफ और वसंत—दोनों मौसमों के लिए उच्च गुणवत्ता वाला प्रमाणित बीज प्राप्त कर सकेंगे, वहीं दूसरी ओर बीज उत्पादन से जुड़े किसान अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकेंगे। इससे मक्का को वैकल्पिक फसल के रूप में अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां धान की खेती से जल संकट गहराता जा रहा है।
जल संरक्षण में सहायक
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल पंजाब में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में भी अहम भूमिका निभा सकती है। मक्का, धान की तुलना में कम पानी की मांग वाली फसल है। ऐसे में यदि गुणवत्तापूर्ण बीज स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होते हैं, तो किसान धान के विकल्प के रूप में मक्का की ओर तेजी से आकर्षित हो सकते हैं। यह कदम राज्य के भूजल संरक्षण प्रयासों को भी मजबूती देगा।
तकनीकी निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण
ICAR-IIMR के वैज्ञानिकों ने बताया कि फील्ड ट्रायल के दौरान परागण नियंत्रण, नर-मादा पंक्तियों का अनुपात, आइसोलेशन दूरी और रोग प्रबंधन जैसे तकनीकी पहलुओं की कड़ी निगरानी की गई। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि किसान के खेत में उत्पादित बीज भी गुणवत्ता के उसी मानक पर खरा उतरे, जो शोध संस्थानों में अपनाया जाता है। शुरुआती नतीजों में बीज की अंकुरण क्षमता और उपज क्षमता संतोषजनक पाई गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब में मिली इस सफलता को बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे मक्का उत्पादक राज्यों में भी दोहराया जा सकता है। यदि राज्य सरकारों और कृषि विभागों का सहयोग मिला, तो यह मॉडल देशभर में मक्का बीज उत्पादन की तस्वीर बदल सकता है।
नीति और बाजार पर असर
इस पहल का असर केवल खेत तक सीमित नहीं रहेगा। मक्का, पोल्ट्री फीड, स्टार्च उद्योग, एथनॉल उत्पादन और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर की अहम कच्ची सामग्री है। हाइब्रिड बीज की बेहतर उपलब्धता से मक्का उत्पादन बढ़ेगा, जिससे एग्री-इंडस्ट्री लिंक मजबूत होंगे और किसानों को बेहतर बाजार मूल्य मिलने की संभावना बनेगी।
ICAR-IIMR अब इस तकनीक को किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों, राज्य कृषि विभागों और FPOs के माध्यम से विस्तार देने की योजना पर काम कर रहा है। लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में किसान न केवल मक्का की खेती में बल्कि बीज उत्पादन में भी भागीदार बनें और कृषि मूल्य श्रृंखला में उनकी भूमिका और आय दोनों बढ़ें।
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