नई दिल्ली, 13 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत में कपास उत्पादन इस वर्ष दबाव में रहने वाला है। रकबे में कमी, लगातार भारी बारिश और चक्रवाती तूफान मोंथा के चलते फसल को नुकसान हुआ है, जिसके कारण 2025-26 सीजन में कपास उत्पादन 2% घटकर लगभग 305 लाख गांठ रहने का अनुमान है। यह पिछले वर्ष के 312 लाख गांठ के मुकाबले कम है और घरेलू कपास बाजार के लिए चिंता बढ़ाने वाला है।
भारतीय कपास संघ (CAI) ने कहा कि कई राज्यों में असमय वर्षा, जल भराव और चक्रवाती गतिविधियों के कारण कपास की उपज प्रभावित हुई है। कुछ क्षेत्रों में जहां पौधों में सड़न और पिंक बॉलवर्म का दबाव बढ़ा, वहीं गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के हिस्सों में बॉल-शीडिंग और फाइबर क्वालिटी पर भी असर देखने को मिला।
उत्पादन कम, लेकिन कुल आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद
दिलचस्प बात यह है कि घरेलू उत्पादन कम होने के बावजूद, सीएआई ने 2025-26 में कुल आपूर्ति 410.59 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया है, जो पिछले साल की 392.59 लाख गांठ से ज्यादा है। यह वृद्धि मुख्य रूप से रिकॉर्ड आयात और ऊँचे ओपनिंग स्टॉक के कारण संभव हो रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर एक अक्टूबर को 60.50 लाख गांठ का ओपनिंग स्टॉक मौजूद है, जो कुल आपूर्ति को मजबूत करता है।
कपास आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है
देश में आयात शुल्क शून्य होने के कारण मिलों ने बड़े पैमाने पर विदेशी कपास की बुकिंग की है। ताजा अनुमान बताते हैं कि अक्टूबर–दिसंबर 2025 के बीच लगभग 30 लाख गांठ कपास का आयात होगा। इस तरह, पूरे वर्ष में आयात 45 लाख गांठ तक पहुंच सकता है। यह भारत के कपास आयात का अब तक का सबसे बड़ा स्तर होगा।
पिछले साल 11% आयात शुल्क के कारण आयात 41 लाख गांठ तक सीमित रहा था। अब शुल्क हटने से मिलें विदेशी कपास पर तेजी से शिफ्ट हो रही हैं, खासकर अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका से आने वाली शॉर्ट-स्टेपल और कंटैमिनेशन-फ्री वैरायटी की ओर।
सीएआई अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा का कहना है कि घरेलू खपत घट रही है और मिलों में मैन-मेड फाइबर (MMF) की हिस्सेदारी बढ़ रही है। क्लीन कॉटन बनाने में जहाँ 200 रुपये/किलो लागत आती है, वहीं विस्कोस और सिंथेटिक फाइबर की लागत 145 रुपये/किलो पड़ती है — इसलिए उत्पादन लागत में अंतर मिलों को MMF की ओर आकर्षित कर रहा है।
बारिश और चक्रवात मोंथा का फसल पर गहरा असर
मौसम वैज्ञानिकों ने इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून की अत्यधिक वर्षा और चक्रवात मोंथा को फसल नुकसान का बड़ा कारण बताया है। सितंबर–अक्टूबर में कई प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में पत्तों का झड़ना, बॉल रॉट, फाइबर की गुणवत्ता में कमी, और उपज में 5–7% तक की गिरावट देखने को मिली।
इसके कारण, जहां पहले अनुमान 330–340 लाख गांठ के थे, वहां अब फसल 305 लाख गांठ तक सीमित रहने की आशंका है।
मिलों का रुझान बदल रहा है, खपत में कमी साफ़
भारत में टेक्सटाइल मिलों की ओर से कपास की खपत पिछले दो वर्षों में लगातार घटती रही है। कारण साफ हैं – MMF पर टैक्स कम, उत्पादन लागत कम, और अंतरराष्ट्रीय विस्कोस की उपलब्धता बढ़ी।
सीएआई के अनुसार वर्तमान वर्ष में कपास की खपत 2% कम रह सकती है, जबकि मिलें करीब चार महीनों की खपत के बराबर स्टॉक लेकर चलेंगी
कुलमिलाकर, 2025-26 कपास सीजन भारत के लिए उत्पादन के लिहाज से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। भारी बारिश, बाढ़ और चक्रवाती गतिविधियों ने पैदावार पर दबाव बनाया है। हालांकि, रिकॉर्ड आयात और ऊँचा ओपनिंग स्टॉक कुल आपूर्ति को संभाले हुए हैं। टेक्सटाइल उद्योग में तेजी से बढ़ते मैन-मेड फाइबर की हिस्सेदारी आगामी वर्षों में भारतीय कपास अर्थव्यवस्था की दिशा तय कर सकती है।
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