मुंबई, 17 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): महाराष्ट्र में आयोजित एशियन सीड कांग्रेस 2025 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय कृषि के भविष्य, किसानों की वास्तविक समस्याओं और बीज क्षेत्र में बड़े सुधारों पर व्यापक और बेबाक चर्चा की। यह सम्मेलन केवल नीति-भाषण नहीं था, यह आने वाले वर्षों में कृषि संरचना को पुनर्गठित करने की सरकारी मंशा का स्पष्ट संकेत था।

चौहान के वक्तव्य ने कृषि उत्पादन, बीज सुधार, बायोफोर्टिफिकेशन, प्राकृतिक खेती और कृषि में प्राइवेट सेक्टर की भूमिका जैसे संवेदनशील विषयों पर नई बहस छेड़ी है। उनके पाँच प्रमुख संदेश भारतीय कृषि में निर्णायक बदलावों का आधार बन सकते हैं।

1. “कृषि ही अर्थव्यवस्था की रीढ़” – सरकार का नया 6-सूत्रीय फार्मूला
चौहान ने याद दिलाया कि भारत का सामाजिक और आर्थिक ढांचा अब भी खेती पर आधारित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि के तीन कोर लक्ष्य तय किए गए हैं – राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, हर नागरिक तक पोषणयुक्त भोजन, और किसानों को लाभकारी खेती।

इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सरकार ने 6-सूत्रीय रणनीति बनाई है – उत्पादन में वृद्धि, खेती की लागत में कटौती, बेहतर दाम सुनिश्चित करना, नुकसान की भरपाई, फसल विविधिकरण, और प्राकृतिक खेती का विस्तार। यह मॉडल आने वाले वर्षों में भारतीय कृषि की दिशा तय कर सकता है।

2. केमिकल-आधारित खेती से संकट गहराता हुआ
केंद्रीय मंत्री
ने स्पष्ट कहा कि भारत हजारों वर्षों से प्राकृतिक खेती का देश रहा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अनियंत्रित उपयोग मिट्टी की उर्वरता को भारी नुकसान पहुँचा रहा है।

चौहान ने सीड कंपनियों को खुला संदेश दिया – “अब ऐसे बीज चाहिए जो कम रसायन में भी ज़्यादा उत्पादन दें।” यह बयान आने वाले समय में बीज अनुसंधान और खेती के तरीकों में बड़े बदलाव का संकेत है।

3. कृषि उत्पादन में ऐतिहासिक छलांग — दुनिया के लिए मिसाल
1951–52 के मुकाबले भारत का कृषि उत्पादन सात गुना तक बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अनाज उत्पादन में 44% की वृद्धि दर्ज की गई है।

चावल, गेहूं, मक्का और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों में अभूतपूर्व वृद्धि ने भारत को सिर्फ आत्मनिर्भर ही नहीं, बल्कि कई खाद्यान्नों का महत्वपूर्ण निर्यातक बना दिया है। चौहान का संदेश स्पष्ट था – भारत दुनिया के खाद्य मानचित्र पर अपनी भूमिका तेजी से मजबूत कर रहा है।

4. बायोफोर्टिफाइड फसलें: कुपोषण से जंग की नई ताकत
ICAR द्वारा विकसित 200 से अधिक बायोफोर्टिफाइड किस्में अब देश में कुपोषण कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। चौहान ने बताया कि आधे से ज्यादा किसान बायोफोर्टिफाइड गेहूं की खेती अपनाने लगे हैं, जो पोषण सुरक्षा की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने जोर दिया कि बीज क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं के बीच मजबूत समन्वय आवश्यक है, जिससे पोषक फसलों का विस्तार गति पकड़ सके।

5. “महंगे और घटिया बीज किसानों पर दोहरी मार” – सख्त कार्रवाई का संकेत
कृषि मंत्री ने सबसे गंभीर समस्या की ओर संकेत किया – किसानों को महंगे और घटिया गुणवत्ता वाले बीजों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर छोटे किसानों को। उन्होंने कहा कि हाइब्रिड बीज हर साल बदलना किसानों पर भारी आर्थिक बोझ डालता है। कई घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जहां बीज अंकुरित ही नहीं हुए या धान में दाना नहीं आया, जिससे किसान कर्ज के दलदल में फँस गए।

चौहान का संदेश बेहद कड़ा था। उन्होंने कहा कि घटिया बीज बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी। संसद के बजट सत्र में नया सीड एक्ट और पेस्टिसाइड एक्ट लाया जाएगा यह बीज उद्योग में दशकों से लंबित सुधारों की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

भारत अभी भी दाल और तेल के आयात पर निर्भर है। मंत्री ने कहा कि सरकार मिशन मोड में उत्पादन बढ़ा रही है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी बहुत कम है। “One Team One Task” मॉडल के जरिए दलहन–तिलहन क्षेत्र में नई और आक्रामक रणनीति लागू करने की तैयारी है।

इस सम्मेलन में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। उन्होंने बताया कि जलवायु संकट के बीच उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की मांग तेजी से बढ़ रही है, और AI व ब्लॉकचेन तकनीक यह सुनिश्चित करेगी कि घटिया बीज किसानों तक न पहुँचें। फडणवीस ने कहा कि मोदी सरकार के प्रयासों से बीज उद्योग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जो सीधे किसानों की उपज बढ़ाने में मदद करेगा।

एशियन सीड कांग्रेस 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार कृषि क्षेत्र, खासकर बीज उद्योग, में बड़े सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है। चौहान के संदेशों ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि आने वाले वर्षों में भारतीय खेती अधिक वैज्ञानिक, अधिक गुणवत्ता-आधारित और अधिक टिकाऊ मॉडल की ओर बढ़ेगी। यह सम्मेलन भारतीय कृषि के भविष्य की रूपरेखा तय करने वाला एक ऐतिहासिक पड़ाव माना जा रहा है।

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