नई दिल्ली, 19 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) ने चालू 2024-25 मिलर सीजन में अब तक लगभग 4,400 गांठ (बेल) कपास की बिक्री की है। यह बिक्री ऐसे वक्त में हुई है, जब घरेलू बाजार में कीमतों की चाल, मिलों की मांग और अंतरराष्ट्रीय कपास बाजार के संकेत—तीनों मिलकर बाजार की दिशा तय कर रहे हैं।
CCI की यह बिक्री ओपन मार्केट चैनल के जरिए की गई है, जिसका उद्देश्य बाजार में उपलब्धता बनाए रखना और स्पिनिंग मिलों की आंशिक मांग को पूरा करना है। हालांकि कुल सरकारी स्टॉक की तुलना में यह मात्रा सीमित है, लेकिन इससे यह संकेत मिलता है कि CCI बाजार में हालात पर करीबी नजर रखे हुए है।
कपास मंडी भाव (थोक, ₹/क्विंटल)
| मंडी / क्षेत्र | भाव (₹/क्विंटल) |
|---|---|
| महाराष्ट्र (औसत) | ~12,000 |
| भावनगर (गुजरात) | ~10,950 |
| फतेहाबाद (हरियाणा) | ~9,570 |
| सिरसा (हरियाणा) | ~9,540 |
| गंधवानी (MP) | 6,350 – 6,800 |
| खंडवा (MP) | 5,400 – 7,160 |
| हनुमानगढ़ (राजस्थान) | 5,800 – 7,400 |
मंडियों में कपास के भाव ₹5,400 से ₹12,000 प्रति क्विंटल के दायरे में हैं, जो गुणवत्ता, नमी और आवक पर निर्भर कर रहे हैं।
इंटरनेशनल कपास आयात-निर्यात का असर
वैश्विक स्तर पर कपास बाजार की चाल इस समय घरेलू कीमतों पर साफ असर डाल रही है। अमेरिका, ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख उत्पादक देशों में बेहतर उत्पादन और ऊंचे स्टॉक के कारण अंतरराष्ट्रीय कपास कीमतें सीमित दायरे में बनी हुई हैं। ICE कॉटन फ्यूचर्स लंबे समय से दबाव में कारोबार कर रहे हैं, जिससे भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो रही है।
भारतीय कपास निर्यात पर फिलहाल दबाव है। बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे प्रमुख आयातकों की मांग सुस्त बनी हुई है। वैश्विक टेक्सटाइल मांग में कमजोरी के कारण नए निर्यात ऑर्डर सीमित हैं। इसका असर यह हुआ है कि घरेलू बाजार में अतिरिक्त सप्लाई बनी हुई है, जो कीमतों को ऊपर जाने से रोक रही है।
हालांकि भारत आमतौर पर शुद्ध कपास निर्यातक है, लेकिन कुछ विशेष किस्मों (एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल) के लिए सीमित आयात जारी है। फिलहाल आयात का दबाव बड़ा फैक्टर नहीं है, लेकिन कमजोर निर्यात के कारण घरेलू खपत पर निर्भरता बढ़ गई है।
डॉलर के मुकाबले रुपये में उतार-चढ़ाव से भी कपास व्यापार प्रभावित हो रहा है। कमजोर रुपया निर्यात को सहारा देता है, जबकि रुपये की मजबूती निर्यातकों की मार्जिन पर दबाव डालती है।
CCI और MSP की भूमिका
बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अंतरराष्ट्रीय मांग कमजोर बनी रहती है, और घरेलू आवक तेज रहती है, तो CCI की आगे की बिक्री और MSP खरीद नीति कपास की कीमतों के लिए निर्णायक होगी। CCI का सीमित लेकिन समयबद्ध हस्तक्षेप कीमतों में अत्यधिक गिरावट को रोक सकता है।
आगे अंतरराष्ट्रीय कपास कीमतों का रुझान यह तय करेगा कि भारतीय कपास निर्यात को कितना समर्थन मिलता है, जबकि बांग्लादेश, चीन और वियतनाम जैसे प्रमुख बाजारों से मिलने वाले निर्यात ऑर्डर घरेलू मांग-आपूर्ति संतुलन पर असर डालेंगे। इसके साथ ही, कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) की आगे की बिक्री और संभावित हस्तक्षेप रणनीति कीमतों के लिए अहम रहेगी।
इसके अलावा, स्पिनिंग मिलों की खरीद गति भी बाजार का मूड तय करेगी, क्योंकि मिलों की सक्रियता बढ़ने पर भावों को सहारा मिल सकता है। कुल मिलाकर, 2024-25 मिलर सीजन में कपास बाजार फिलहाल संतुलन की तलाश में है, जहां घरेलू नीतिगत फैसले और वैश्विक संकेत मिलकर आगे की दिशा तय करेंगे।
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