खरीफ प्याज की कीमतों में उछाल: ₹4,300 तक पहुंचा भाव, रबी प्याज की हालत क्यों पतली?

मुंबई, 2 दिसंबर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): भारत के कृषि बाजार में, प्याज (Onion) हमेशा से एक ऐसी उपज रही है जिसकी कीमतें उपभोक्ता और किसान दोनों को रुलाती रही हैं। एक तरफ जहाँ अचानक महंगाई से आम आदमी परेशान होता है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन अधिक होने पर किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिल पाती। हाल ही में, प्याज बाजार में एक बड़ा असंतुलन देखने को मिला है—खरीफ प्याज (Kharif Onion) की कीमतों में 55% तक की भारी वृद्धि हुई है, जबकि रबी प्याज (Rabi Onion) के दाम बहुत नीचे चल रहे हैं।

खरीफ प्याज के भाव में तेज़ी का कारण

खरीफ प्याज का थोक भाव ₹4,300 प्रति क्विंटल तक पहुँच गया है, जो पिछली अवधि की तुलना में 55% अधिक है। इस उछाल के पीछे मुख्य कारण आपूर्ति में कमी है। खरीफ प्याज की बुवाई जून-जुलाई में होती है और कटाई अक्टूबर से दिसंबर तक। मानसून की शुरुआत में देरी या बाद में हुई भारी बारिश (Heavy Rain) के कारण प्याज की फसल को नुकसान पहुँचा है। पिछले साल के कम उत्पादन और ऊँचे भाव को देखते हुए इस वर्ष किसानों ने खरीफ प्याज का रकबा (Sowing Area) बढ़ाया है। हालांकि, मौसम की मार के चलते अपेक्षित उपज बाजार तक नहीं पहुँच पाई। बाजार में मुख्य रूप से रबी सीजन का प्याज (कुल उत्पादन का लगभग 70%) स्टॉक में होता है। भंडारण (Storage) में नुकसान या पुराना स्टॉक खत्म होने के कारण, नए खरीफ प्याज की मांग अचानक बढ़ गई है। कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए लगाए गए निर्यात शुल्क और स्टॉक लिमिट के कारण भी बाजार में अनिश्चितता बनी रहती है।

रबी प्याज की ‘खस्ताहाली’

एक ओर जहाँ खरीफ प्याज के दाम आसमान छू रहे हैं, वहीं रबी प्याज (Rabi Onion), जिसकी कटाई मार्च से मई के बीच होती है और जो आमतौर पर लंबे समय तक भंडारण के लिए बेहतर माना जाता है, उसकी कीमतें खस्ताहाल हैं।

  • उत्पादन की अधिकता: पिछले वर्ष रबी सीजन में प्याज का उत्पादन काफी अच्छा रहा था। बंपर फसल (Bumper Crop) के कारण बाजार में आपूर्ति बहुत अधिक हो गई है।

  • कमजोर भंडारण: भारत में आज भी किसानों के पास पर्याप्त और उन्नत भंडारण सुविधाएँ नहीं हैं। बारिश शुरू होने या नमी बढ़ने के डर से किसान अपने रबी प्याज को कम कीमतों पर भी जल्दी से जल्दी बाजार में बेच रहे हैं, जिससे आपूर्ति का दबाव बढ़ गया है।

  • लागत भी नहीं निकल रही: कई मंडियों में रबी प्याज का भाव ₹3.5 प्रति किलो तक गिर गया है, जबकि उत्पादन की लागत ₹10-12 प्रति किलो तक आती है। इससे किसानों को भारी घाटा (Loss) हो रहा है।

उपभोक्ता बनाम किसान: संतुलन की चुनौती

प्याज की इस दोहरी कीमत नीति (Dual Price Policy) ने सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। खरीफ प्याज की बढ़ती कीमतों से महंगाई (Inflation) का डर बढ़ गया है, जिससे आम आदमी का बजट बिगड़ रहा है। रबी प्याज उगाने वाले किसान लागत भी न निकाल पाने के कारण हताश हैं और उन्हें अगली फसल की बुवाई के लिए पूंजी जुटाने में मुश्किल हो रही है।

इस असंतुलन को दूर करने के लिए केवल तत्काल उपाय (Immediate Measures) ही काफी नहीं हैं। सरकार को दीर्घकालिक रणनीति पर काम करना होगा। इसमें शीत भंडारण (Cold Storage) सुविधाओं में सुधार, किसानों को मंडी भाव के जोखिम से बचाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था और निर्यात नीति में स्थिरता (Stability) लाना शामिल है, ताकि भारत की सबसे महत्वपूर्ण सब्जियों में से एक के मूल्य चक्र में स्थिरता लाई जा सके।

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