पटना, 17 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): बिहार में NDA की धमाकेदार वापसी के बाद अब सबसे ज्यादा चर्चा उन वादों की हो रही है, जो गठबंधन ने किसानों से चुनाव के दौरान किए थे। खास तौर पर PM-किसान की सालाना किस्त को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 9,000 रुपये करने और धान, गेहूं, मक्का और दालों के लिए MSP की गारंटी देने की बात पर पूरे राज्य का कृषि समुदाय नजरें टिका कर बैठा है। NDA ने वादा किया है कि पंचायत स्तर पर सरकारी खरीद केंद्रों के माध्यम से MSP को जमीनी स्तर पर लागू किया जाएगा, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।
बिहार: छोटे किसानों का राज्य, बड़ी उम्मीदें
बिहार में खेती ज्यादातर लोगों के जीवनयापन का आधार है। 2015–16 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 97% हिस्सा छोटे और सीमांत किसानों के पास है, जबकि राष्ट्रीय औसत 86.1% है। यानी बिहार में छोटे किसानों की संख्या देश में सबसे अधिक है, और यही समूह सरकार के नए वादों से सबसे ज्यादा उम्मीद लगाए बैठा है।
छोटे खेत, बड़ी आर्थिक चुनौतियाँ
स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में औसत खेत का आकार मात्र 0.39 हेक्टेयर है, जबकि सीमांत किसानों के लिए यह घटकर सिर्फ 0.25 हेक्टेयर रह जाता है। पूरे देश में यह औसत कहीं अधिक है—1.08 हेक्टेयर और 0.38 हेक्टेयर। इतनी छोटी जोतों पर खेती करने से किसानों की आय भी सीमित रहती है। इनके पास निवेश की क्षमता कम होती है और जोखिम ज्यादा।
PM-किसान राशि बढ़ाने का वादा, लेकिन बटाईदारों तक पहुँच बड़ी चुनौती
बिहार में करीब 75 लाख किसान PM-किसान योजना में पंजीकृत हैं और सालाना 6,000 रुपये की केंद्रीय मदद पाते हैं। NDA ने “कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि” के तहत अतिरिक्त 3,000 रुपये की सहायता का वादा किया है।
लेकिन यहां एक चुनौती है—बिहार में हर चार में से एक किसान बटाईदार है, जो किराए पर जमीन लेकर खेती करता है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में बटाईदारी 2012–13 में 22.67% से बढ़कर 2018–19 में 25.1% हो गई। भूमि स्वामित्व न होने के कारण इन किसानों को योजनाओं का लाभ पहुँचाना प्रशासन के लिए कठिन कार्य होगा।
बिहार की मंडियों की कमजोर हालत और भविष्य की चुनौतियाँ
केंद्र सरकार के 2024 के ड्राफ्ट नीति दस्तावेज में बिहार की मंडियों को “बदहाल स्थिति का उदाहरण” बताया गया है। दस्तावेज़ में कहा गया है कि फल, सब्जियों और मखाना जैसी फसलों के लिए प्रोसेसिंग और मार्केटिंग सिस्टम को मजबूत करना आवश्यक है, ताकि किसानों को उचित दाम मिल सके और ग्रामीण रोजगार बढ़े।
विशेषज्ञों का मानना है कि पंचायत स्तर पर खरीद केंद्र बनाना एक बड़ा सुधार हो सकता है, लेकिन इसके लिए गोदाम, परिवहन, प्रशिक्षित स्टाफ, मजबूत प्रबंधन, डिजिटल रिकॉर्ड सिस्टम की आवश्यकता होगी। बिना सशक्त मंडी व्यवस्था के यह मॉडल केवल कागजों पर ही रह सकता है।
MSP की गारंटी: सबसे बड़ा सवाल
NDA ने धान, गेहूं, मक्का और दालों के लिए MSP गारंटी देने का वादा किया है। लेकिन इसे व्यवहार में लागू करने के लिए राज्य को खरीद का विशाल नेटवर्क तैयार करना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पंचायत स्तर पर खरीद केंद्र वास्तव में काम करने लगें तो किसानों की आय में बड़ा सुधार हो सकता है, लेकिन मौजूदा संसाधनों और बुनियादी ढाँचे को देखते हुए यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है।
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