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नई दिल्ली, 27 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): अमेरिका के साथ चल रही व्यापार समझौते की वार्ताओं के बीच भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) मक्का और सोयामील के आयात की आशंका ने किसानों और घरेलू उद्योग दोनों को चिंतित कर दिया है।

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल को पत्र लिखकर अमेरिका से जीएम सोयामील के आयात की अनुमति न देने की अपील की है। संगठन का कहना है कि देश में पर्याप्त घरेलू उत्पादन और स्टॉक मौजूद हैं, इसलिए आयात की कोई आवश्यकता नहीं है।

किसानों के लिए बढ़ सकती है मुश्किलें
देश के कई हिस्सों में इस समय सोयाबीन और मक्का दोनों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चल रहे हैं।

  • सोयाबीन के भाव एमएसपी से 200–300 रुपये तक नीचे हैं।

  • कई मंडियों में मक्का की कीमतें 1200–1300 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर चुकी हैं, जबकि एमएसपी 2400 रुपये प्रति क्विंटल है।

ऐसे में यदि अमेरिका के साथ होने वाले किसी भी व्यापार समझौते में जीएम मक्का या सोयामील के आयात का रास्ता खुलता है, तो इससे किसानों की आर्थिक स्थिति पर बड़ा असर पड़ सकता है।

SOPA का सरकार को पत्र: ‘जीएम आयात से बचें’
सोपा ने सरकार को लिखे पत्र में कहा है -“द्विपक्षीय व्यापार समझौते या किसी भी आयात अनुमति में जीएम सोयामील को शामिल करने से बचें। भारत के गैर-जीएमओ सोयाबीन खेती, प्रसंस्करण और निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की जाए।”

SOPA अध्यक्ष देविश जैन ने चेतावनी दी है कि यदि इस समय जीएम सोयामील के आयात को अनुमति दी गई, तो यह भारत के कृषि क्षेत्र के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि इससे सोयाबीन की पहले से कमजोर कीमतों में और गिरावट आ सकती है, जिससे न सिर्फ किसान बल्कि घरेलू तेल मिल और प्रोसेसिंग उद्योग भी प्रभावित होंगे।

मक्का पर भी संकट की स्थिति
मक्का किसानों के लिए भी हालात समान हैं। एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम को बढ़ावा देने के बावजूद मक्का की कीमतें लगातार गिर रही हैं। कई राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार में किसान एमएसपी से 1000 रुपये तक कम भाव पर मक्का बेचने को मजबूर हैं।

भारतीय किसान संघ समेत कई किसान संगठनों ने भी सरकार से मांग की है कि जीएम मक्का के आयात को मंजूरी न दी जाए। उनका कहना है कि इससे भारत की बीज सुरक्षा और फसल विविधता पर भी असर पड़ेगा।

आत्मनिर्भरता के दावों को झटका
भारत सरकार जहां एक ओर खाद्य तेलों और तिलहन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी ओर जीएम फसलों का आयात इस प्रयास को कमजोर कर सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आयात की अनुमति दी गई तो इससे घरेलू किसानों की प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी, गैर-जीएम फसलों के निर्यात बाजार प्रभावित होंगे, और भारत की खाद्य सुरक्षा नीति पर दबाव बढ़ेगा।

राज्यों में बढ़ी किसानों की नाराजगी
मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जीएम मक्का या सोयामील के आयात की मंजूरी दी, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे। मध्यप्रदेश सरकार पहले ही भावांतर भुगतान योजना लागू कर चुकी है, लेकिन किसानों का कहना है कि कीमतों में भारी गिरावट के चलते नुकसान की पूरी भरपाई नहीं हो पा रही है।

कृषि विशेषज्ञों की राय
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने किसानों की रक्षा के लिए गैर-जीएम फसलों के प्रोत्साहन, स्थानीय बीज अनुसंधान, और उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति पर ध्यान देना चाहिए। उनका कहना है कि जीएम फसलों का अनियंत्रित आयात भारत की खाद्य पारिस्थितिकी और जैव विविधता को खतरे में डाल सकता है।

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