मुंबई, 17 अक्टूबर (कृषि भूमि डेस्क): अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार में तनाव बढ़ गया है क्योंकि चीन ने अब तक नए अमेरिकी सोयाबीन की बुकिंग नहीं की है। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम व्यापारिक दबाव (Trade Leverage) बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन आयातक देश है, आमतौर पर सितंबर से दिसंबर के बीच अमेरिकी फसल की भारी खरीद करता है। लेकिन इस बार, किसी बड़े सौदे का संकेत नहीं मिला है।
क्या है मामला?
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक मतभेद — खासकर कुकिंग ऑयल और कृषि उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ — अब सोयाबीन व्यापार को सीधे प्रभावित कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, चीन फिलहाल ब्राजील, अर्जेंटीना और रूस जैसे अन्य स्रोतों से सोयाबीन आयात बढ़ा रहा है, जिससे अमेरिकी निर्यातकों पर दबाव बढ़ गया है।
“चीन अमेरिकी उत्पादों को लेकर राजनीतिक संकेत भेजना चाहता है। सोयाबीन एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ दबाव डालने से अमेरिका के किसानों और निर्यातकों पर सीधा असर पड़ता है,”
— डॉ. मार्क एंड्रयूज, ग्लोबल एग्री ट्रेड एनालिस्ट
वैश्विक बाजार पर असर
- अमेरिकी सोयाबीन वायदा (CBOT) में हल्की गिरावट दर्ज की गई।
- ब्राजील के सोयाबीन निर्यात में तेजी आई है, क्योंकि चीन वहां से वैकल्पिक आपूर्ति सुनिश्चित कर रहा है।
- सोया ऑयल और पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अस्थिरता देखी जा रही है।
इस विवाद से भारत जैसे देशों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि तेल बीजों के दाम वैश्विक स्तर पर तय होते हैं।
बता दें कि अमेरिका और चीन के बीच 2018 से शुरू हुआ ट्रेड वॉर कृषि उत्पादों पर केंद्रित रहा है। सोयाबीन, जो अमेरिकी किसानों की प्रमुख निर्यात फसल है, बार-बार इस संघर्ष का केंद्र बनती रही है। चीन ने पहले भी अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने और दक्षिण अमेरिकी साझेदारियों को मज़बूत किया था।
विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर यह स्थिति बनी रही, तो
- अमेरिकी निर्यातक दक्षिण अमेरिकी बाजारों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं,
- और वैश्विक तेल बीज आपूर्ति श्रृंखला (Oilseed Supply Chain) में नया संतुलन बन सकता है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका को इस दबाव के जवाब में व्यापार नीति में नरमी दिखानी पड़ सकती है, ताकि निर्यात फिर से संतुलित हो सके।
कुलमिलाकर, सोयाबीन विवाद सिर्फ दो देशों के बीच का व्यापारिक टकराव नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य तेल और पशु आहार उद्योग पर असर डालने वाला मुद्दा है। चीन के इस रुख से संकेत मिलता है कि आने वाले महीनों में तेल बीज बाजार में कीमतों का उतार-चढ़ाव और बढ़ सकता है।
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