नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): ग्रेटर नोएडा प्रशासन ने किसानों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि पराली जलाने पर न केवल जुर्माना लगेगा, बल्कि सरकारी योजनाओं से भी बाहर किया जा सकता है। धान की कटाई के साथ खेतों में पराली जलाने की संभावना बढ़ती जा रही है, जिससे प्रदूषण और वायु गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ सकता है। प्रशासन ने किसानों से अपील की है कि वे पराली जलाने की बजाय उसे खाद में बदलने की तकनीकों को अपनाएँ।
कृषि उप निदेशक राजीव कुमार ने बताया कि ग्राम पंचायत से लेकर तहसील स्तर तक निगरानी दल तैनात किए गए हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा सैटेलाइट से निगरानी की जा रही है और दैनिक बुलेटिन के ज़रिए रिपोर्टिंग भी की जा रही है।
राजीव कुमार ने कहा:
“सितंबर तक हुई बारिश के कारण पराली जलाने की घटनाएँ नहीं हुईं, लेकिन अब धान की कटाई शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में ऐसी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।“
अधिकारियों के अनुसार, पराली जलाने से पीएम 2.5, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे घातक प्रदूषक निकलते हैं, जो खासकर सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
2024 में गौतम बुद्ध नगर जिले में 38 पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गई थीं, जो पिछले पाँच वर्षों में सर्वाधिक थीं। इसके बाद दो प्राथमिकी दर्ज की गईं और कई किसानों पर जुर्माना भी लगाया गया।
प्रशासन ने किसानों से बार-बार अपील की है कि वे धान के अवशेषों को खेत में मिला कर खाद में बदलें। इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी और पर्यावरण भी बचेगा। अधिकारियों ने चेताया है कि जो किसान चेतावनी के बावजूद पराली जलाते पाए जाएंगे, उनके खिलाफ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
किसानों को भी जागरूक होना होगा कि पराली जलाना सिर्फ जुर्माना देने का मामला नहीं है, यह उनके स्वास्थ्य, पर्यावरण और आजीविका पर भी असर डालता है। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाना आज की आवश्यकता है।
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