नई दिल्ली, 8 सितंबर (कृषि भूमि ब्यूरो):
देशभर में चने के दामों में हाल के दिनों में तेज़ उछाल देखा जा रहा है। इसका प्रमुख कारण दाल मिलों द्वारा चने की भारी खरीदारी और मंडियों में दैनिक आवक का कम होना बताया जा रहा है।
देश के कई हिस्सों में दाल मिलें चना दाल की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए भारी मात्रा में कच्चे चने की खरीद कर रही हैं। इससे मंडियों में उपलब्ध स्टॉक पर दबाव बढ़ा है। व्यापारियों के अनुसार, मिलें पहले से ही अपने स्टॉक को सुरक्षित करने के लिए अग्रिम खरीद कर रही हैं, जिससे भाव तेज़ हो गए हैं।
वर्तमान मंडी भाव
वर्तमान में देश के प्रमुख दलहन मंडियों में चना के थोक भाव ₹6,200 से ₹6,800 प्रति क्विंटल के बीच चल रहे हैं, जबकि चना दाल के भाव ₹7,800 से ₹8,500 प्रति क्विंटल तक पहुँच गए हैं। महाराष्ट्र के लातूर, मध्य प्रदेश के इंदौर और राजस्थान के कोटा मंडी में भावों में 200-300 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई है।
स्थानीय खुदरा बाजारों में भी असर दिखने लगा है, जहाँ चना दाल ₹90 से ₹110 प्रति किलो तक बिक रही है। उपभोक्ताओं को महंगे दाम चुकाने पड़ रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ वैकल्पिक दालों की उपलब्धता सीमित है।
आवक में गिरावट बनी चिंता
फिलहाल कई प्रमुख मंडियों में चना की दैनिक आवक औसतन 25% से 30% तक कम हुई है। इसके पीछे एक ओर स्टॉक होल्डिंग बढ़ना है, तो दूसरी ओर किसानों द्वारा नई आवक को रोककर रखने की रणनीति भी बताई जा रही है। किसान अधिक दाम की उम्मीद में उपज रोक कर बैठे हैं।
फसल उत्पादन पर भी असर
पिछले सीजन में मानसून की अनिश्चितता और बुवाई क्षेत्र में कमी के चलते चने का कुल उत्पादन घटा है। किसानों ने दलहनों की बजाय अन्य लाभकारी फसलों की ओर रुख किया, जिससे बाजार में चने की आपूर्ति प्रभावित हुई है।
स्थानीय रुझान: किसान और व्यापारी चिंतित
मध्य प्रदेश और राजस्थान के स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि अगले दो हफ्तों में आवक नहीं बढ़ी, तो भाव और तेज़ हो सकते हैं। किसान संघों ने भी चेताया है कि यदि सरकार सक्रिय रूप से हस्तक्षेप नहीं करती, तो उपभोक्ताओं पर बोझ और बढ़ेगा
वहीं, किसानों की राय में उन्हें अभी भी उत्पादन लागत के मुकाबले उचित मूल्य नहीं मिल रहा। कई क्षेत्रों में मंडी शुल्क और परिवहन लागत भी चना बेचने को महंगा बना रही है।
सरकार की ओर से मूल्य नियंत्रण के लिए दालों की सरकारी खरीद और बफर स्टॉक बनाने की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं। साथ ही, उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा स्थिति की निगरानी की जा रही है।
कुलमिलाकर, चना की बढ़ती कीमतों के पीछे मिलों की खरीद, दैनिक आवक में गिरावट और कम उत्पादन जैसे कई कारक काम कर रहे हैं। अगले कुछ हफ्ते बाजार के लिए निर्णायक होंगे — अगर आवक नहीं बढ़ी, तो उपभोक्ताओं के लिए चना और चना दाल की कीमतें और बढ़ सकती हैं।
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